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उचित कदम उठाने का संकल्प और लालची पति की मांगों को मारता हुआ करारा तमाचा ।बढ़िया रचना आद गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।हार्दिक बधाई !
रचना में कालखंड दोष है आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, अत: इसे लघुकथा की श्रेणी में नहीं माना जा सकता I प्रतिभागिता हेतु अभिनंदन स्वीकारें I
कालखंड दोष को व्याख्यायित करें आ 0 अनुज मेरे लिए भी और मंच के लिए भी . आ० राजेश दीदी की रचना पर भी यह इल्जाम लगा था , अतः इसे समझना आवश्यक है I सादर .
आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, लघुकथा एक इकहरी एकांगी विधा है जोकि एकल कालखंड के भीतर ही सीमित रहती है I एक उपन्यास में अनेकानेक कालखंड हो सकते है, एक कहानी में भी एक से अधिक कालखंड हो सकते है किन्तु लघुकथा में केवल एक ही कालखंड का ज़िक्र हो सकता है I यह कालखंड ही है जो एक महीन सी रेखा बनकर एक लघुकथा और कहानी में अंतर पैदा करता है I
बहुत बढ़िया आदरणीय अनुज . आशा है मंच अवश्य इस जानकारी से लाभान्वित होगा. सादर.
आदरणीय गुणीजनों को प्रणाम. यह चर्चा पढ़ कर मेरा भ्रम दूर हो गया. क्यों कि मैं अभीअभी इस पर टिपण्णी कर चूका था. सादर.
हैsss !!! कथा तो वाकई सन्न कर ,चौकाने वाली बन पड़ी है यहां आपकी आदरणीय गोपाल नारायण जी , लेकिन कालखण्ड दोष ने ग्रषित कर दिया इस क्षण विशेष विधा के मानकों पर। आप कोशिश कीजियेगा कोई कालसर्प निवारण पद्दति का इस कथा के लिए जरूर , ये हमारा विनम्र निवेदन है आपसे। सादर।
करार जवाब, ऐसे धन के लालची लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए..पर लघुकथा के नियमों से बाहर निकल गई है कथा...
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी!बहुत सशक्त लघुकथा!महिला शक्ति का अनुपम उदाहरण!इस तरह की पृवृति के लोगों का यही सही उपचार है!
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी आप ने बहुत ही बढ़िया रचना लिखी है; इस हेतु मेरी बधाई स्वीकार कीजिएगा. मगर मुझे इस पंक्ति ने संशय में डाल दिया है. /// छह महीने बाद प्रज्ञा ने पति को उद्घाटन पर आने का निमंत्रण दिया I/// यह पंक्तिया लघुकथा को कालखंड में बांटती है. इस से शायद कालखंड दोष आ गया है. सादर.
यह मेरा भ्रम भी हो सकता है.
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