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औंधी खोपड़ी (संकल्प)
राज महल में सारी औपचारिकतायें पूर्ण हो चुकी थी राज तिलक होने से पहले अंतिम प्रक्रिया सवरूप ज्ञानी दास जी संकल्प पत्र पढ़ रहे थे.. “ मैं जाति धर्म वर्ण से उठकर” वाक्य पूर्ण होने से पहले ही ..काँव-काँव की आवाज से व्यवधान हुआ|
ज्ञानी दास जी ने पुनः पढना शुरू किया- ” “मैं जाति धर्म वर्ण से उठकर...” फिर वही काँव-काँव ..ऐसा जब कई बार हो गया तो पास के वृक्ष की टहनी पर झूलते दो कव्वों को देखते हुए राजा ज्ञानी सिंह ने पूछा- “सभा में कोई व्यक्ति है जो खग भाषा में प्रवीण हो अतः ये बता सके कि ये क्या कह रहे हैं” बीच में से सत्य देव नामक व्यक्ति ने कहा “हुजूर मैं जानता हूँ खग भाषा” “अच्छा!! तो ये बताओ ये क्या कह रहे हैं राजा ने खुश हो कर पूछा”|
“हुजूर ना ही पूछे तो बेहतर होगा पर आप बाध्य कर रहे हैं तो बताता हूँ इन्होने कहा है” जैसी कारी कामरी चढ़े न दूजो रंग अब तो अँधेरी नगरी चौपट राजा”
“अर्थात!” राजा ने पूछा| “हुजूर काली चमड़ी पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता और अब तो चौपट राजा से अँधेरी नगरी हो जायेगी” सत्य देव ने झिझकते हुए अर्थ बताया|
राजा क्रोध में आपे से बाहर होकर सत्यदेव से बोला “इन सैनिकों के साथ जाओ इन कव्वों को पकड़ कर अभी मेरे सामने लाओ ऐसा न होने पर तुम्हारा सिर कलम कर दिया जाएगा”
सत्यदेव ने कव्वों को पकड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी पर सब व्यर्थ| असफल होकर राजा के सामने घुटने टेक गर्दन कलम करवाने के लिए तैयार हो गया| सेनापति वार करने ही वाला था कि फिर काँव-काँव ने व्यवधान डाल दिया राजा क्रोधित होकर बोला “सत्यदेव! मरने से पहले ये बताते जाओ कि अब ये क्या कह रहे हैं तथा ये दोनों हैं कौन”
सत्यदेव बोला: “हुजूर अब ये कह रहे हैं, औंधी खोपड़ी उल्टा मत, खेत खाये गधा मारा जाए जुलाहा”
हुजूर मुझे भी नसीहत दे रहे हैं कि मरने से पहले संकल्प ले अगले जनम में किसी मूर्ख के सामने कड़वा सच नहीं बोलेगा|
“पर ये हैं कौन राजा ने पूछा” “हुजूर ये बता रहे हैं की पिछले साल जो साम्प्रदायिक दंगे आपने करवाए थे ये दोनों उसमे मरने वाले दो धर्मों के नुमाइंदे हैं अब ये खग योनि जिसमे जाति धर्म का कोई वर्गीकरण नहीं है, में बहुत सुकून से हैं”|
मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह, सुन्दर लघुकथा आ. राजेश कुमारी जी। बहुत पते की बात कही है कौवों ने। मनुश्य के अलावा किसी योनि में जाति , वर्ण या धर्म के आधार पर भेद नहीं होता। मनुष्य को सीख लेनी चाहिए इन प्राणियों से।
आ० नीरज शर्मा जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |
वाह !!! लघुकथा के माध्यम से आपने बहुत बड़ी बात कह दी आदरणीया राजेश कुमारी जी। यही सच है कि धर्मों के नुमाइंदों ने मानव जाति को बहुत व्यथित किया है और पतन के कगार तक ले जाने में जरा भी कमी नहीं की है।
देख सुनकर दिल बहुत दुखता है। निज हित को साधने में मानवीय मूल्यों का बहुत ह्वास हुआ है। बहुत ही गंभीर लघुकथा हुई है आपकी। स्वीकार करे। सादर।
आ० कांता जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |
आ० वीरेंद्र वीर जी ,आपको प्रस्तुति पसंद आई दिल से आभार आपका |
वाह वाह, क्या ही खूबसूरत लघुकथा कही है आ० राजेश कुमारी जी आनंद आ गया I आयोजन की शोभा में चार चाँद लगाती इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
आ० योगराज जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मन बाग़ बाग़ हो गया सच कहूँ तो इस विषय ने बहुत मशक्कत करवाई पूरा महीना कथानक ढूँढने सोचने में निकल गया कुछ अलग लिखना चाहती थी कल से नेट पर भी नहीं आ सकी आज सुबह अचानक मन में ये प्लाट आ धमका तो कहानी लिख ली थी किन्तु वक़्त मिलेगा पोस्ट करने को या नहीं सोच में थी सुबह तीन बजे मुंबई के लिए निकलने के लिए उठना है इसलिए जल्दी में हूँ |आपका दिल से बहुत बहुत आभार |
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