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सबसे पहले तो इस मुशायरे का फीता काटने के लिए बधाई....
जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
बिलकुल सही कहा आपने धर्मेन्द्र भाई महल कितना भी बड़ा हो एक वीराना तो होता ही है.....शानदार रचना...बहुत ही बढ़िया..
जियादा हो महल ऊँचा तो तहखाना भी होता था
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था
कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था
बहुत खूब कहा धर्मेन्द्र जी, सभी शेर 1 से बढ़कर 1 है......पर ये न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
ये इतना पसंद आया है मुझे जिसे मे शब्दो नही कह सकता....
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
सुभानाल्लाह.....
यक़ीनन ग़ज़ल आगाज करने लायक थी .....
न देखो झुर्रियाँ पलकों की तुम ऐसी निगाहों से
इन्हीं आँखों में बीते वक्त मयखाना भी होता था
सुभानाल्लाह.....
यक़ीनन ग़ज़ल आगाज करने लायक थी .....
कई जीवन जिये हमने निगाहों ही निगाहों में
तुम्हें खोना भी पड़ता था तुम्हें पाना भी होता था
वाह क्या बात है
सर्वप्रथम उदघाटन ग़ज़ल कहने हेतु मुबारकवाद, धर्मेन्द्र भाई सभी शेर अच्छे है, मतला और अंतिम शेर बेहद खुबसूरत है |
जहाँ फाँसी चढ़ी ममता जहाँ गोली लगी सच को
जहाँ पर न्याय था घायल वहीं थाना भी होता था,
क्या बात है क्या बात है , बहुत ही खुबसूरत और बुलंद ख्यालात है भाई , बधाई कुबूल कीजिये |
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