For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तरही गज़ल '' समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कबतक " - गिरिराज भंडारी

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहर - हज़ज़ मुसमन सालिम
न पूछोगे, सतायेंगी तुम्हें रुसवाइयाँ कब तक

अगर तुम जान लो पीछे चली परछाइयाँ कब तक  

 

हैं उनकी कोशिशें तहज़ीब को बेशर्मियाँ बाटें  

मुझे है फ़िक्र झेलेंगे अभी बेशर्मियाँ कब तक

 

ज़रा सा गौर फरमायें कसाफत है ये नदियों की   ( कसाफत - गंदगी )

“समन्दर पर उठाओगे बताओ उँगलियाँ कब तक ”

 

शराफत की कबा कब तक बताओ बुजदिली ओढ़े

सहन करता रहेगा मुल्क ये शैतानियाँ कब तक

 

वो देखो हो रहा है अब उफ़क का रंग सिंदूरी

न सोचो तुम रुलायेंगी अभी तारीकियाँ कब तक

 

किसी की याद ख़्वाबों में ख़यालों में जो हो ज़िंदा

तो फिर सोचो सतायेंगी उसे तनहाइयाँ कब तक

 

जो नादानी में हैवानों से भी आगे रहे, उनकी ,

मैं आईने से पूछूँगा , सहें नादानियाँ कब तक

 

रसाई चीख़ की भी है नहीं जब आसमानों तक

यक़ीं वालों करोगे सोच लो ,शरगोशियाँ कब तक   
*******************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

Views: 766

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2016 at 3:40pm

आदरणीया सीमा शर्मा जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2016 at 3:39pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by सीमा शर्मा मेरठी on January 20, 2016 at 1:57pm
बधाई खूबसुरत गजल वाह
Comment by सीमा शर्मा मेरठी on January 20, 2016 at 1:56pm
वाह वाह खूबसूरत ग़ज़ल बधाई जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 12:00am

आदरणीय गिरिराज सर, शानदार ग़ज़ल हुई है. अशआर एक से बढ़कर एक है. इस शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2016 at 8:28am

आदरनीय लक्ष्मण भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2016 at 8:27am

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ग़ज़ल को मिली तो गज़ल कहना सार्थक हुआ । उत्साह वर्धन एक लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 6:09am

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई आ० भाई गिरिराज जी l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2016 at 9:49pm

वाह  वाह  आ० गिरिराज जी ,क्या मुरस्सा ग़ज़ल कही है सभी शेर काबिले तारीफ हैं दिल से दाद हाजिर है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 8:43pm

आदरनीय सुशील सरना भाई , गज़ल की उन्मुक्त सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service