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प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.
आभार आदरणीया शशी बंसल जी.
सुमन मंदिर में इन्तजार करती रह गयी. रोहित ने अपना असल रंग दिखा दिया था. - सार्थक प्रस्तुति के साथ समारोह का शुभारम्भ करने के लिए बधाई आदरणीय
आदरणीय लक्ष्मण लडिवाला जी, उत्साहवर्धन करती आपकी टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार.
आ० बागी जी . छोटी किन्तु पुरअसर कथा के लिए आपको बधाई . सादर
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.
आदाब आदरणीय समर साहब, आपका आशीर्वाद मिला, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार.
वाह, गणेश भाई वाह ! किसी आयोजन में आपकी शिरकत वाकई कमाल कर देती है. जिस गंभीरता से आप रचनाकर्म करते हैं, विशेषकर लघुकथा विधा में, वह मुग्ध कर देती है. नायिका की दृढ़ता ने मुझ पाठक को मोह लिया है, साथ ही, लिजलिजी सोच के नायक के प्रति वितृष्णा भी पैदा होती है.
एक सशक्त लघु कथा केलिए हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ स्वीकारिये.
एक बात :
पहली दो पंक्तियाँ संवाद हैं जो एक ही व्यक्ति की उक्ति हैं. इन दोनों पंक्तियों को तो एक साथ ही या संवाद-उक्ति बन कर रहना था. इन्हें दो पंक्तियों में रखने से दो पात्रों की उक्तियों (संवादों) का भ्रम होता है. है न ?
शुभेच्छाएँ
आदरणीय सौरभ भईया, किसी भी प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति ही रचना कर्म को सार्थक कर जाया करती है, आपकी सराहना पा कर यह लघुकथा अलंकृत हो गयी, बहुत बहुत आभार.
पहली दो नहीं बल्कि तीनों पक्तियां एक ही व्यक्ति (नायक) का संवाद है किन्तु तीनों संवाद में क्षणिक ठहराव है जिस कारण से तीनों संवाद को एक साथ नहीं रखा गया है कथा में उतरने के साथ भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है. उम्मीद है आप सहमत होंगे, सादर.
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