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आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी, इस विधा में आप कितने सिद्धहस्त होते जा रहे हैं, आपकी प्रस्तुतियों में कितनी कसावट आती जा रही है, यह आपकी इस लघुकथा को पढ़ कर भान हो रहा है. ’गिरगिट’ के प्रतीक पर आपने बहुत कुछ साझा किया है. विश्वास है, इस समाज को ढेर सारे ’आफ़ताब’मयस्सर होंगे.
इस सफल प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार कीजिये, आदरणीय
शुभ-शुभ
"गिरगिट तो अपनी सुरक्षा के लिए या साथी को आकर्षित करने के लिए रंग बदलता है, लेकिन तुम .....!" अपने साथी को सोचने को मजबूर करते ये सशक्त पंकित्या कहनी को सफल बना रही है | बहुत बहुत बधाई श्री शेख उस्मानी साहब
अंतिम पंक्ति को खाली छोड़, बिना शब्दों के ही आपने पाठकों को सोचने पर विवश कर दिया| एक आम व्यक्ति कभी भी आतंकवादी नहीं बनता, जब तक कि उसे बरगलाया न जाए और वो बातों में न आये| इस सच को दर्शाती रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब|
प्रदत विषय को संतुष्ट करती एक अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है आदरणीय शेख शेहजाद उस्मानी जी, बधाई स्वीकार करें.
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