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कथा की सराहना करने के लिए बहुत धन्यवाद आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी ।
बहुत ही बढ़िया लघुकथा का सृजन किया है आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी सर| काव्य सहित और कितने ही रंग समाहित हो गए हैं इस एक रचना में| कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय चंद्रेश जी ! कथा पर अपने मनोभाव प्रकट करने के लिए विनम्र आभार।
आदरणीया नीता सैनी जी ! कथा पर अपने मनोभाव प्रकट करने के लिए विनम्र आभार।
आदरणीय टी आर शुकुलजी, आपकी सहभागिता और प्रस्तुति ने मंच को समृद्ध किया है. आपकी लघुकथा केलिए हार्दिक आभार
रंग
लाल को उदास देख नीले ने कहा "क्या बात ऐसे उदास क्यों? अब तो हमारे वंशज भी नाम कमा रहे हैं."
"भाई जो हमने उदारता से पीले के संग संतान की वो तो यह सोच कर की थी कि संसार की सुंदरता की बढ़ोतरी होगी.
जब मेरा पुत्र हुआ उसमें मेरी उष्मा व ओज तो था ही पीली की सरलता भी थी; हम बहुत आशावान थे कि यह तुम्हारे व पीली के सयुँक्त रचना "हरे" के साथ समाज को आगे बढ़ने में सहायक होगे."
"हाँ भाई सच हैं ऐसे नये रंग बनाने का क्या लाभ जो समाज में कटुता बढ़ाए" कह कर नीले ने ठंडी साँस छोड़ी
"भाई इसमें हमारा क्या दोष? ये मनुष्यों की ही गलती हैं कि प्रक्रति के रंगो को भी वर्गों में बाट दिया."
"ठीक हैं भाई यह आदमी ही कर सकता हैं, उल्लास के रंगो से झगडा."
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मौलिक व अप्रकाशित
जनाब राजेंद्र कुमार साहिब , रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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