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वनवास
(साथी विषय आधारित)
रसोई में काम करती सौम्या के कानों में एक बार फिर से अपने पापा के बेतहाशा गुस्से की आवाज आने लगी थी। सौम्या थोड़ी परेशान सी अपनी मम्मी से बोली।
" लगता है आज फिर पडोस के बच्चों की शामत आई हुई है, देखती हूँ जरा जाकर मैं। "
उम्मीद के मुताबिक पापा पडोस के बच्चों पर हद से ज्यादा नाराज हो रहे थे। आज एक बार फिर से बच्चों की गेंद हमारे आँगन में आ गई थी और पापा को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बच्चे मुंह लटका कर हमेशा की तरह वापस जाने ही वाले थे तभी सौम्या ने चुपके से अपने पापा के कानों में कुछ कहा। सौम्या की बात पर सोच में पड़ गए शर्मा जी ने आँगन में रखे गेंद से भरे बोरे को बच्चों के हवाले कर दिया। वनवास के खत्म होने की खुशी मे बोरे में रखी हर गेंद मुस्कुरा दी थी। साथी से मिलन अब असम्भव जो नहीं था ना।
रसोई में वापस आते ही माँ ने पूछ ही लिया।
"ऐसा क्या कह दिया।"
" कुछ नहीं माँ बस याद दिला दिया पापा को, अब आपके भी नाती पोते बड़े हो रहे हैं।"
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आहूत बढ़िया पंच | अब आपके भी नाती पोते बड़े हो रहे हैं।"
बचपन की याद दिलाती सुन्दर रचना आदरणीय नेहा अग्रवाल जी .
बहुत सुंदर मिलन कराया आपने नेहा जी ,बधाई।
अति-सुंदर कथा | बधाई
मोहतरमा नेहा साहिबा , सीख देती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय नेहा जी, कम परन्तु यथोचित शब्दों में जीवंत क्षणों की सशक्त अभिव्यक्ति ही असल लघुकथा होती है। लघुकथा में जीवन के उन क्षणों को आवर्धक लेंस से देखने का प्रयत्न किया जाता है जो अक्सर जीवन की आपाधापी में अनदेखे रह जाते है। प्रस्तुत लघुकथा में आपने भी अत्यंत सूक्ष्म परन्तु जीवंत भावनाओं का चित्रण किया है। बहुत ही प्रभावशाली कथा बनी है जो विषय से पूरी तरह न्याय कर रही है। मैं आपको एक स्नेहिल परामर्श देना चाहता हूंः पिता जी को आंगन में बच्चों की गेंद लेते देख रसोई में से मां ने धीरे से कान में कुछ कहा और पिता जी ने सारी गेंदे बच्चों को वापिस कर दी। जब सौम्या ने पूछा तो मां ने उसे बताया कि उसने पिता जी के कान में कहा है कि ‘आप दादा बनने वाले हो।’ यदि इस विचार को रोपित किया जाए तो आशा है कि कथा और अधिक प्रभावशाली बनेगी। आपके इस सद़प्रयास हेतु हृदय से शुभकामनाएं निवेदित हैं। सादर
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