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बहुत बढिया पंकज भाई जी ! बधाई
जनाब पंकज जोशी साहिब , सीख देती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय पंकज जी,
साथी - लाल सलाम !
"अरे रवि बहुत दिनों बाद दिखे हो, कहीं बाहर गये थे क्या ?" कैम्पस में काफी समय बाद मिली बचपन की दोस्त आयशा ने उससे पूछा ।
"अरे कुछ नहीं बस यूं ही घर चला गया था ।"
"बड़ी अजीब बात है कल ही मैंने घर फोन किया था तो पता चला कि तुम कई महीनो से घर गये ही नहीं ।"
"अच्छा मेरी अम्मा तुम अभी चलो मुझे क्लास अटेंड करनी है और भी काफी काम है ।" कैंटीन से अपनी किताबें उठाते हुए चलने को हुआ।
"और यह साथ में तुम्हारे लड़की कौन है ? परिचय नहीं करवाओगे मेरा इससे ?"
"अरे यह तान्या है मेरी क्लास मेट और तान्या... यह है आयशा, खुश चलो चलते हैं ।"
"यह तुम बेगानो जैसा क्या सलूक कर रहे हो मेरे साथ, मैं कई दिनों से देख रही हूँ तुम मुझसे कन्नी काट रहे हो, ठीक से बात भी नहीं करते, यह क्या हुलिया बना रखा है तुमने ? लम्बे बाल, दाढ़ी, फ़टी जीन्स, कुर्ता, यह चप्पल, कंधे पर झोला और ये मुँह से कैसी अजीब सी बदबू आ रही है ? कैम्पस में लोग ना जाने तुम्हारे बारे में बातें कर रहे हैं , तुम्हे पता भी है ?"
"क्या कहते हैं मेरे बारे में ?"
"यही कि तुम किसी संगठन से जुड़ें हो ।"
"तो क्या मैंने कोई अपराध कर लिया?"
"देखो मैं तुम्हें कुछ समझाने का प्रयत्न कर रही हूँ कि ...."
इससे पहले की वह कुछ कहती तभी उसने उसे रोक दिया " देखो मैं अपना भला बुरा भली भांति समझता हूँ, तुम मेरी पैरेंट बनने की कोशिश ना करो । और तुम्हें यह अधिकार दिया किसने कि तुम मेरी इंकायवरी करती फिरो ?"
"क्या यह भी तुम्हे मुझे बताना होगा कि मैं तुम्हारी कौन हूँ ? चलो बैठो कार में पहले मैं तुम्हारा हुलिया बदलवा दूं फिर किसी अच्छे से रेस्त्रां में बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे ।"
"तुम पूंजीवादियों की यही समस्या है कि हर समय बात बात पर अपने पैसे की धौंस जमाते रहते हो ।"
"हैलो ! यह क्या बोल रहे हो हमारे बीच यह सब कहाँ से ? ..... "
तभी पीछे से आती हुई भीड़ के नारों में उसकी आवाज दब गई और रवि ने तेजी से अपना हाथ आयशा से छुड़ाया और लाल सलाम , लाल सलाम चिल्लाते हुए उसमे खो गया । पीछे रह गई तो आँसूओं से डबडबाई उसकी आँखे जिन्हें अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके बचपन का प्यार उससे इतनी दूर चला जायेगा ।
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क्या लघुकथा को इस तरह पोस्ट नहीं किया जाना चाहिए आदरणीय?
आदरणीय पंकज जी की कथा को आपने बहुत सही तरीके से संयोजित कर दिया है आपने आदरणीय मिथिलेश जी। कथा को पढ़ने में अब आनंद दुगुना हो जायेगा। आभार इस संयोजन के लिए।
अनुमोदन हेतु आभार आपका
देश की इस विषम परिस्थिती को आपने कथानक के तौर पर चुन कर एक जोखिम उठाया है लेकिन सम्प्रेषण शानदार हुआ है। गुमराह होते युवा और उनके लिए सिसकते उनके अपने लोगों को , बहुत संवेदात्मकता से पेश किया है आपने आदरणीय पंकज जी। बहुत बहुत बधाई आपको इस सार्थक लघुकथा के लिए ।
आदरणीय मिथिलेश जी मैं ने जो कहा था वह आप ने कर दिखाया .बधाई आप को .
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