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आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेई जी , कथा पर अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए विनम्र आभार।
आदरणीया नीता कसारजी , कथा पर अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए विनम्र आभार।
आदरणीया कान्ता रॉय जी , आपने बिलकुल सही परखा है, जीवित लोग तो स्वार्थ वश ही साथ देते हैं या फिर देते ही नहीं। संत कबीर भी कह गये हैं कि
"अंत में, संग चली केवल सूखी लकड़िया " अतः निर्जीवों को विश्वास पूर्वक साथी बनाया जा सकता है। कथा पर अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए और अनुमोदन देने के लिए विनम्र आभार।
निर्जीव की निष्ठा के द्वारा बहुत ही गहरा कटाक्ष हुआ है आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी सर| सादर बधाई आपको उस उत्तम रचना के सृजन हेतु|
आदरणीय चंद्रेश जी ! कथा की अंतरंगता को पहचानने और अपने मनोभाव प्रकट करते हुए अनुमोदन देने के लिए विनम्र आभार।
कथा पर अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर जी।
लाठी सबसे बड़ा सहारा सबसे सच्चा साथी ...वाह कितना आत्मविश्वास, स्वाभिमान से भरा नायक है इस लघु कथा का ..एक कटु सच्चाई भी है की एक अवस्था ऐसी आती है जब लाठी ही सहारा होती है जो स्वजनों से अधिक भरोसे मंद व सच्ची साथी होती है
बहुत सुन्दर लघु कथा हार्दिक बधाई आ० डॉ० टी आर सुकुल जी
कथा पर अपना अनुमोदन और निष्कर्ष परक टीप देने के लिए विनम्र आभार , आदरणीया राजेशकुमारी जी।
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