आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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प्रस्तुति को अनुमोदन मिला, हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी..
शुभ-शुभ
आ.सौरभ जी हर बार की तरह नि:शब्द करती आपकी रचना. इस पर टिप्पणी करने तक की उँचाई नही है अभी मेरी लेकिन इतना कहूँगी--कागजी नारों ,झंडे और डंडे के संवाद से .. सुन्दर चित्र उभारा है आपने | बहुत कुछ हम नवांकुरो को सिखाती अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई स्वीकारें |
आदरणीया नयना जी आपकी सदाशयता के हम सदा से कायल रहे हैं.
हार्दिक धन्यवाद
मोहतरमा जनाब सौरभ पांडेय साहिब ,प्रतीकों के माध्यम से सन्देश देती और दिल को छू लेने वाली बेहतर लघु कथा के लिए ... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, आपसे कॉपी-पेस्ट वाला अनुमोदन मिला. धन्यवाद.
काश मोहतरमा से आ की मात्रा निकाल दिये होते.
:-))
आदरणीया कान्ताजी, टिप्पणी की शुरुआत में ही आप इतना ज़ोर से हँसती हुई दिखी हैं कि मुझे लगा मैंने कोई अटपटी बात कह दी है. आदरणीया व्यंग्य की विधा हास्य के समकक्ष रखने की परिपाटी कितनी भयावह स्थिति पैदा कर सकती है ये अब ’साहित्य’ को भी समझ में आने लगा है. :-))
लेकिन आगे की पंक्तियों में आपसे मिला अनुमोदन आश्वस्त कर गया कि रचना अपने उद्येश्य में सफल रही है.
सादर धन्यवाद
आई बहुत भय गेल ! आब से हम कहियो नै हसबै , सच्चे कहैत छी . __/\__/\__/\__
हँसनाय पर कत गप्प भेल ? गप्प ई नै अछि.. हँसनाय मुदा डाइवर्ट्ड कर बला नै हुऐ क चाही. आ हम सभ गोटा सँ एना कतऽ बाजै छियै ?
मुदा जे सीख बला अछि तकरे सेलोगो गप्प करइया
आपका सादर आभार आदरणीय विजय शंकर जी. आपने सही फ़रमाया है, विषय तनिक गहन था. इसीसे इसका निर्वहन ’चलते’ हुए अंदाज़ में किया. अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद
सादर
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