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जब जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया (ग़ज़ल)

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

 

जब जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया

हमने तो दिल के शहर का नक्शा बदल दिया

 

इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद

देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया

 

अंतर गरीब अमीर का बढ़ने लगा है क्यूँ

किसने समाजवाद का ढाँचा बदल दिया

 

ठंडी लगे है धूप जलाती है चाँदनी

देखो हमारे प्यार ने क्या क्या बदल दिया

 

छींटे लहू के बस उन्हें इतना बदल सके

साहब ने जा के ओट में कपड़ा बदल दिया

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(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:34pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2016 at 10:43am

इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद

देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया

क्या खूब ग़ज़ल हुई है आ० धर्मेंदर भाई ..बहुत बहुत बधाई .

Comment by vijay nikore on April 3, 2016 at 3:28pm

आपसे एक और खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली। हार्दिक बधाई।

Comment by Ravi Shukla on April 2, 2016 at 7:40am
वाह वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल से नवाजा है आपने मंच को सीधे सीधे शब्दों में कितनी खूबसूरती से बात कह दी आपने किस शेर का उल्लेख करे इश्क में बदलने की बात करे या साहब के कपडे बदलने की बात हर शेर बहुत बढ़िया बधाई हार्दिक बधाई ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2016 at 11:17pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सूबे सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 1, 2016 at 11:17pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुनील जी

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 1, 2016 at 10:17pm
धर्मेंद्र जी बधाई हो अच्छी ग़ज़ल पेश की है
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 1, 2016 at 7:32pm
जनाब धर्मेन्द्र साहिब ग़ज़ल के हर अशआर बेहद उम्दा सोच के साथ रूबरू है आज के दौरे माहोल को देख आपके खयाल हर दिल को जरूर सोचने पर मजबूर करेगा दिली दाद आपको।

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