For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- "मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ" बशीर साहब की ज़मीन में एक कोशिश। ( दिनेश कुमार )

11212--11212--11212--11212

लो गुनाह और सवाब की, मैं ये रहगुज़ार बुहार लूँ
या तो खुद को कर लूँ तबाह मैं , या हयात अपनी सँवार लूँ

तू हर एक शै में समाया है...के वो ज़र्रा हो या हो आफ़ताब
मेरी बन्दगी है यही ख़ुदा, के मैं खुद में तुझ को निहार लूँ

मुझे माँगने में हिचक नहीं, न वो नाम का ही रहीम है
जो लिखा न मेरे नसीब में.. उसे मैं ख़ुदा से उधार लूँ

मेरी साँस साँस तड़फ रही, तेरी इक नज़र को मिरे ख़ुदा
मुझे अपने पास बुला या फिर,मैं तुझे फ़लक़ से उतार लूँ

मैं वो रहमतों का फरिश्ता हूँ...जो ख़ुदा के फ़ज़्ल से है यहाँ
मेरा काम बिगड़ी सँवारना ...मैं गुलों के बदले में ख़ार लूँ

मैं ग़ज़ल में दर्द पिरोऊं जब... तू खुशी के गीत सुना मुझे
यूँ ही महफ़िलों का ये दौर हो.. यूँ ही ज़िन्दगी मैं गुज़ार लूँ

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2016 at 2:04pm

भाई दिनेश जी ..आनंद आ गया गुनगुनाने में ..कमाल की इस रचना पर ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Rahila on May 16, 2016 at 9:50am
खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय दिनेश सर जी! हर शेर बहुत शानदार लगा । बहुत बधाई ।सादर नमन
Comment by दिनेश कुमार on May 5, 2016 at 1:28pm
हार्दिक आभार आप सभी का।
Comment by vijay nikore on April 26, 2016 at 1:44pm

बहुत ही खूबसूरत खयाल हैं इस गज़ल में । बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2016 at 4:53pm

बहुत ही शानदार....ढेर सारी बधाइयाँ 

 

Comment by Sushil Sarna on April 20, 2016 at 1:51pm


लो गुनाह और सवाब की, मैं ये रहगुज़ार बुहार लूँ

या तो खुद को कर लूँ तबाह मैं , या हयात अपनी सँवार लूँ

तू हर एक शै में समाया है...के वो ज़र्रा हो या हो आफ़ताब

मेरी बन्दगी है यही ख़ुदा, के मैं खुद में तुझ को निहार लूँ

वाह आदरणीय बहुत ही नायाब अहसासों को आपने अपनी ग़ज़ल में पिरोया है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
6 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
13 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service