आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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kahi gahri katha hei sabdo se aage jaate hue, anubhav ke bina aur purvagarh se dekhne wale jab koi nirnay kare to chatro se hi hoge.
Bhai ji bahut sarthak katha
आजकल की पीढ़ी कुछ ऐसे ही देखती है अधिकांशतया, बढ़िया रचना विषय पर| बधाई आपको
मोहतरम जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब , सिंहासन के माध्यम से क़ौमी एकता का बेहतर सन्देश आपने दिया है , फ़िर्क़ा परस्तों को आईना दिखाती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
//'क़ौमी एकता सप्ताह' पर आयोजित मशहूर चित्रकारों की शासकीय रेखाचित्रकला प्रदर्शनी दर्शकों के लिए तरस रही थी।// हमारे देश का एक कडवा सच, कौमी एकता के कार्यक्रम सिर्फ एक खाना पूर्ति.. इसी प्रकार पञ्च लाइन // "पल्ले पड़ा कुछ? चलो रे, हो गई फारमेलटी!"//
सार्थक लघु कथा कही है आपने ,बधाई स्वीकार करें आदरणीय उस्मानी जी
आ.उस्मानी जी रेखाचित्र की प्रदर्शनी मे स्कुली छात्रो के संवाद का मर्म और मुख्य अध्यापक द्वारा की की गई फार्मेल्टी का तमाशा देखते कुछ तमाशबीन शिक्षक के साथ आपने सार्थक तथ्य उभारा इस हेतु आप बधाई के पात्र है.
विषय को परिभाषीत करती उम्दा लघुकथा के लिए बधाई हो उस्मानिजी।
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