आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी!समाज में व्याप्त एक कुत्सित नज़रिये को बडी बेबाक़ी से प्रस्तुत किया है आपने!मनोरंजन के लिये तमाशबीन भी कितनी तत्परता से अपनी प्राथमिकताओं को बदल लेता है!दस साल की बच्ची के करतब से एक नवयौवना के नग्न अंग उसे अधिक मनोरंजक लगते हैं!शानदार रचना!
उत्तम विषय का चुनाव किया है जनाब समर कबीर जी साहब और आदरणीय योगराज जी सर ने आपकी रचना में चार चाँद लगा दिए| दिली बधाई कबूल फरमाएं|
मसीहा
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रात ग्यारह बजे शादी समारोह से लौटते गाडी को पीछे आ रही टैक्सी ने टक्कर मारी तो गाडी डिवाइडर पर चढ़कर उलट गई | टैक्सी दौड़ाकर ड्राइवर भाग गया | घर लौटते दो सब्जी ठेले वालों ने गाड़ी किसी तरह सीधी करवाई तो पीछे बैठे बुजुर्ग दम्पत्ती घायल अवस्था में बाहर निकले | गाडी चला रही उनकी बहूँ को वहा इक्कट्ठे हुए लोगो की भीड़ में से कोई टैक्सी के नम्बर बता रहा था, कोई पुलिस में शिकायत करने की सलाह दे रहा था तो कोई पटरी पर बैठे कराह रहे बुजुर्ग दंपत्ति को अस्पताल ले जाने को कह रहा था पर ले जाने आगे कोई नहीं आया |
तभी एक अन्य टैक्सी में आ रही अधेड़ महिला ने टैक्सी रुकवा बुजुर्ग दंपत्ति को अपनी टैक्सी में बैठाकर अस्पताल ले गई जहाँ बुजुर्ग व्यक्ति का एक्सरे कर भर्ती कर लिया गया | उन्हें तुरंत इंजेक्शन लगा आक्सीजन देने के बाद डाक्टर ने कहा कि इन्हें लाने में और देरी हो जाती तो वृद्ध व्यक्ति को बचाना मुश्किल हो जाता | तब प्राथमिक चिकत्सा के अभाव में अपने पति को खो चुकी उस अधेड़ महिला ने कहा –“वहाँ भीड़ तो काफी थी पर अस्पताल पहुँचाने की हिम्मत कोई नहीं कर रहा था” |
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(मौलिक व् अप्रकाशित)
हार्दिक आभार आदरणीया जानकी जी
हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब | बहूँ जो गाडी चला रही थी वह काफी डर गई थी जो जिसे देवर घर छोड़ अपने बुजुर्ग पिता को देखने खुद ही अस्पताल गया था | ये पंक्तियाँ त्रुटिवश रह गई | सादर
लघुकथा पसंद करने के लिए शुक्रिया श्री समर कबीर साहब |
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