आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वाह बहुत खूब कथा कहीं आपने। बधाई
अच्छे शिल्प के तानेबाने से बुनी, बढ़िया पंचलाइन वाली सुंदर व्यंग्यात्मक लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
"लानत "
तीन गुण्डे टाइप व्यक्ति एक जवान युवती को थोड़ी दूर खड़ी वेन की ओर घसीट कर ले जारहे थे ,युवती उनसे छूटने के प्रयास में छटपटा रही थी। गंगा की बूढी हड्डियों में इतना दम कहाँ था कि वह उन बदमाशों से अपनी बेटी को छुड़ा पाती ,फिर भी उसने दौड़कर एक बदमाश का हाथ पकड़कर बिलखते हुए कहा - " छोड़ दे मेरी बेटी को.......छोड़ दे "
"चलहट बुढ़िया " कहते हुए उसने एक झटका दिया तो गंगा जमीन पर गिर पड़ी। मोहल्ले के लोग अपने घरों से निकल कर देख रहे थे। गंगा चीखती रही - "कोई मेरी बेटी को बचालो , बचालो कोई उसे ,वह मासूम है। " गुण्डे युवती को लेकर वेन में बैठे और चले गए। गंगा ने रोना बंद करके आग्नेय नेत्रों से आसपास के सारे लोगों को घूरा फिर चीख कर बोली - "जाओ चले जाओ सब , अब क्या है यहाँ , तमाशा ख़त्म होगया है। लेगए हैं वे मेरी बेटी को , नोच खसोट कर किसी सड़क पर फ़ेंक देंगे ,वह मर जाएगी। कल मोहल्ले की किसी और लड़की को लेने आयेंगे ,तब तमाशबीन बनकर देखना। थू । " उनकी ओर थूक कर पैर पटकती हुई चली गई।
धन्यवाद माननीय समर कबीर साहब कहानियाँ लिखता रहा हूँ ,लघुकथा के क्षेत्र में पहला प्रयास है।
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