आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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इस कथा को बनाने में मुझे बहुत सोचना पड़ा सर. एक तो शाश्वत सत्य सी पौराणिक कथा तिस पर मन में हमेशा उठने वाले एक विचार को कथ्य रूप देना. चलिए भाव का विरोध नहीं हुआ ये मेरे लिए आत्म संतोष की बात है. कथा मैं फिर से अनावश्यक को आप के मतानुसार काट-छंट नया स्वरुप दे दूंगी. धन्यवाद सर.
तीक्ष्ण बात कही है आपने आदरणीय रीता गुप्ता जी ,गुरु जनों के मार्गदर्शन अनुसार सुधार के साथ कुछ टंकण
त्रुटियों पर भी ध्यान दें ।शुभ कामनाएँ ।
आभार आदरणीय.
इस कथा को बनाने में मुझे बहुत सोचना पड़ा सर. एक तो शाश्वत सत्य सी पौराणिक कथा तिस पर मन में हमेशा उठने वाले एक विचार को कथ्य रूप देना. चलिए भाव का विरोध नहीं हुआ ये मेरे लिए आत्म संतोष की बात है. कथा मैं फिर से अनावश्यक को आप के मतानुसार काट-छांट नया स्वरुप दे दूंगी. धन्यवाद सर.
आपका यह प्रयोग सौ प्रतिशत सफल रहा आ० रीता गुप्ता जी, आश्वस्त रहें !
सर पौराणिक कथाओ पर किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
धन्यवाद आदरणीय समीर जी.
विभीषण जितनी भी सफाई दे ',घर का भेदी लंका ढाए' मुहावरा तो बन ही गया , पौराणिक विषय उठाकर प्रदत्त विषय को नए आयाम में खोला है आपने ,बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया रीता जी
आपने सही कहा कि विभीषण पर ',घर का भेदी लंका ढाए' मुहावरा बदनाम है. जबकि ढहा सिर्फ लंकेश और उसका परिवार था, लंकावासी नहीं. लंका अक्षुण और अखंड रहा. धन्यवाद आदरणीया .
प्रतीकात्मक लघुकथा लिखते समय हमे बहुत सावधान रहने की जरुरत होती है आदरणीया रीता जी . आपने विभीषण के देशभक्ति को बिम्बित करते हुए प्रसंग को उठाया है लेकिन जहां आपको अपने पात्र का रोपण कर इसे आंशिक रूप से कथा में रोपित करना था वहाँ आपने इस पूरे प्रसंग को ही लघुकथा बना कर प्रस्तुत किया है ,ऐसे में ये प्रसंग तो विभीषण पर आपका अपना सन्दर्भ रोपित हुआ है लेकिन ये कथा तो पूर्णत: वाल्य्मिकी या तुलसीदास जी की पात्र पर आपकी मात्र विवेचना बन कर ही रह गयी . हम इसमें आपकी अपनी मौलिक पात्र व कथा तो ढूढ़ ही नहीं पाए .प्रतीकात्मक लघुकथा लिखते समय प्रतीक पात्र और संदर्भित पात्र में एक समरूपता एवं सामंजस्य का होना जरूरी है . जैसे सिक्के के दो पहलु होते है हेड और टेल ठीक उसी प्रकार किसी भी रचना के प्रस्तुति के माध्यम भी पात्रात्मक दृष्टि से दो पहलु होंगे ,एक मानवीय पहलू और दूसरा प्रतीक पहलू . किसी भी पहलू की कमी से लघुकथा धराशायी हो सकता है .
हम सब यहाँ मंच पर मुख्य रूप से लघुकथा के तकनीकों पर ही बात करने के उद्देश्य से आते है और तकनीकों से सम्बंधित नई पहलूओं पर चर्चा भी हमारा उद्देश्य होना चाहिए ताकि आयोजन को सार्थक दिशा मिल सके . वाह -वाही करके आगे निकलना तो बहुत आसान था मेरे लिए भी लेकिन मैं चाहती थी कि मंच पर प्रतीकात्मक लघुकथा लेखन पर भी व्यापक चर्चा हो जो आज तक नहीं हो पाया है . पूर्व में भी इस तरह के लेखन में विविध भ्रांतियां सामने आई थी इसलिए मेरे हिसाब से ये चर्चा बेहद जरूरी था . आशा है कि आप इसे सीखने -सिखाने की परम्परा के तौर पर एक नवीन आयाम मानते हुए सकारात्मक लेकर , अन्यथा नहीं लेंगी . सादर .
धन्यवाद कांता जी. मेरा बस यही उद्देश्य था नकारात्मक छवि वाले विभीषण के एक सकारात्मक पहलु को उजागर करना. जो मेरे मन में हमेशा उठती रही है. पात्र और कथा तो मेरे मौलिक हैं ही नहीं, मैंने उल्लेख भी किया है. हां ये बात सही है मैंने एक पौराणिक पात्र की ही एक विवेचना भर किया है. यही मेरा मकसद भी था. इसके प्रस्तुतीकरण को बोझिलता से बचा लेने के लिए मैं अवश्य कुछ फेर बदल करुँगी. आपके और अन्य सभी की समीक्षा के बाद. एक बार फिर आभार.
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