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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 64 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 20  अगस्त  2016 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 64 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा और कुकुभ छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

******************************************************************************

१. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
प्रथम प्रस्तुति - कुकुभ छन्द
====================
शयन कक्ष की खिड़की पर दो, चिड़िया रोज सुबह आती।
जब तक मैं बिस्तर ना छोड़ूं, चूँ चूँ करती इठलाती॥
दाना डालूँ जब आँगन में, मुझे परखती फिर आती।
फुदक फुदक कर आगे बढ़ती, फिर चुगने में लग जाती॥

खूब फुदकती खूब चहकती, चिड़िया आँगन भर घूमें।
बीच बीच में बड़े प्यार से, चारा बाँटें मुख चूमें॥
चंचल चतुर चहकने वाली, सब के मन को भाती है।
आस पास ही रहती लेकिन, हाथ कभी ना आती है॥

मौसम है सावन भादो का, छाई खूब घटा काली।
धरती लगती नई नवेली, दीवारों पर हरियाली॥
चिड़िया दिन भर उड़ती फिरती, रात लगे इनको भारी।
मिलकर ढूंढे रैन बसेरा, सांझ ढले चिड़ियाँ सारी॥

जाने क्या बातें करती हैं, साथ चहकती रहती हैं।
इक दूजे से प्यार जताती, बैर कभी ना करती हैं॥
क्या होता निःस्वार्थ प्रेम ये, चिड़ियाँ हमें बताती हैं।
कामी क्रोधी लोभी जन को, खुश रहना सिखलाती हैं॥
*************************
२. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
प्रथम प्रस्तुति [ कुकुभ छंद ]
=====================
दबा चोंच में दाना लाई ,एक चिरैया भोली सी
ममता के रस में है भीगी ,बच्चे की हमजोली सी
जब तक बच्चा छोटा उसका, उदर तभी तक भरती है
सधे पंख लेकर उड़ जाता .नहीं मोह फिर करती है

चोंच उठाये खुश है बच्चा ,चिड़िया आई ले दाना
हो संसार बड़ा कितना भी ,माँ ही जग इसने जाना
नहीं नीड़ में माँ होती जब ,हर आहट से डर जाता
पंखों की जब गर्म रजाई, डाले माँ तब सुख पाता

नहीं चिरैया सोचे कल की ,सुख दुख से है अनजानी
मानव सोचे बरसों की पर, चले काल की मनमानी
परम पिता ने आज दिया है ,कल भी तो वह सुध लेगा
चूँ चूँ चिड़िया पूछ रही है ,कब मानव यह समझेगा

 

दोहा छंद [द्वितीय प्रस्तुति]
======================
दाना लेकर चोंच में ,आई चिड़िया एक
आस लिए चूजा तके,माँ जीवन की टेक

माँ ने सीधे चोंच में ,चोंच रखी है डाल
बच्चा दाना खा रहा , माँ हो रही निहाल

चूजा छोटा है अभी ,आती नहीं उड़ान
रखता माँ के संग में ,उड़ने का अरमान

पूछे चूजा माँ बता, कैसा ये संसार
क्यों दिखता सब ओर है, मानव का अधिकार

कोलाहल ने कर दिया ,गौरैया को मौन
चहक बनी है फोन धुन ,सच में पूछे कौन
*******************
३. आदरणीय चौथमल जैन जी
दोहा छंद
========
चिड़ियाँ घडती नीड़ है , तिनके तिनके जोड़।
छोटे -छोटे अण्डे दे , सेत रेन से भोर ॥

दाने लाती दूर से , पुत्र प्रेम की सोच ।
देती दाने चोंच में , डाल चोंच में चोंच ॥

उड़ना सिखला देत है , लेत गगन में साथ ।
छोड़ उसे उड़ जात है , आत नहीं है हाथ ॥

सूना -सूना नीड़ है , अंखियाँ अंश्रु धार।
बैठी वो गमगीन है , अपने मन को मार ॥
**********************
४. आदरणीया वन्दना जी
दोहागीत
=======
दाना देते चोंच में पिता प्रेम अनमोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल
छंद रचे या श्लोक तू नित नए हर बार
तुतली वाणी में बहे कविता की रस धार
चूँचूँ चींचीं रूप में मीठी मीठी बोल
ले चुग्गा ......

ठहर जरा भरपूर ले  अपना यह आहार.................. (संशोधित)

फिर उड़ना आकाश में अपने पंख पसार

स्वप्निल एक वितान तू अरमानों से तोल
ले चुग्गा ......

मर्यादित रहना सदा हो सीमा का भान
बाधाएँ आती डरे रक्षित निज सम्मान
ओलम्पिक की रेस हो या जीवन का झोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल
*****************
५. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
कुकुभ छंद
========
दूर कहीं से शायद उड़कर ,देखो है चिड़िया आई
अपने मुंह के अंदर रखकर ,दाना पानी है लाई
बड़े प्यार से बच्चे को वह , अपने से है लिपटाये
चोंच खोलकर मुंह में दाना, बच्चे को चिड़ी खिलाये ।

 

दाना बदली हर चिड़िया का ,लगता है बड़ा सुहाना
अपने बच्चों को देता है ,हर परिन्द यूँ ही खाना

और कहीं जा उड़कर अब तू, बच्चा तेरा घबराए 
कुछ शरारती लोग देख तो , हाथों में पत्थर लाए................ (संशोधित)

 

दोहा छंद
=======
बैठी है दीवार पर ,लिए चैन की आस
बच्चा भी मौजूद है ,देख चिड़ी के पास

मतलब की खातिर सभी ,करते हैं उपकार
उड़जा पंछी हो गया , बेगाना संसार

 

दाना बदली कर रही ,नहीं उसे कुछ होश
चिड़िया भी खामोश है ,बच्चा भी खामोश

 

बेज़बान है यह चिड़ी , मत कर अत्याचार
इसका रब भी है वही ,जो अपना करतार

 

गिरा घोसला पेड़ से ,हुई बिना घर बार
लेकर बच्चा उड़ गयी , चिड़िया आखिकार

 

रब की यह तख़लीक़ है ,कर इसको आज़ाद

कर सवाब का काम तू ,ओ ज़ालिम सय्याद

 

भूखी प्यासी हैं सभी ,नेकी का कर काम
कर हर पंछी के लिए ,दाना पानी आम

 

उड़ते उड़ते पेड़ पर ,बैठें जब हो शाम
घर इनका होता नहीं ,कहाँ करें आराम
*********************
६. आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल जी
दोहे
===
भाव भरा है मातृ दिल, बहता जैसे नीर
कष्ट देख संतान के ,माता हुई अधीर 

पशु पक्षी इन्सान में, माँ हैं एक समान
सबसे पहले सोचती, बच्चे उनकी जान

चिड़िया चुगती चोंच से, मिला चोंच से चोंच
माँ लाती चुन कर सकल, दाने है आलोच

कभी कहीं खतरा नहीं, जब माँ होती पास
बच्चे इसको जानते, करते हैं अहसास

धन्य धन्य मायें सभी, धन्य सभी संतान
करती रक्षा प्रेम से, पक्षी या इन्सान

माएं है सबसे बड़ी, दूजा हैं भगवान
शीश झुका आशीष ले, कर माँ का सम्मान

(संशोधित)
*********************
७. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
पाँच दोहे
======
अब पंछी में ही बचा, आपस का अनुराग
इंसानी घर तो हुये , स्वारथ के अनुभाग

है पत्थर आधार पर, तरल सरल है भाव
हृदय भरा है प्रेम जो, कहाँ रहे टकराव

मानव-छाया ना पड़े , पंछी रखना ध्यान
केवल नफरत बाँटता, तथा कथित इंसान

मात्र बुद्धि जब सोचती, सदा तोड़ती नेह
हर जुड़ाव को चाहिये , भावों का अवलेह

ज्ञानी से सीखे बहुत , टूटन पायी मात्र
लगता है गुरु भाव के , अज्ञानी थे पात्र
********************
८. आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी
प्रथम प्रस्तुति (कुकुभ छन्द )
=====================
नन्हा सा बच्चा हूँ मैया, कोई चाहे चट जाए।
भूखा-प्यासा तकता राहें, काटन सूना घर आए।
जननी चिड़िया दाना चुगकर, दिन ढलते ही घर आए।
सूने-सूने नीरस मन में, राग बहारें भर जाएं।1।

माँ की ममता होती है क्या, चिड़िया जग को सिखलाती।
चोगा पानी लाने खातिर, तूफानों से टकराती।
खुद रह जाए भूखी बेशक, बच्चों की भूख मिटाती ।
जेतो वाजिब तेतो खाना, जन-जन को ये बतलाती । 2

माता के जीवन में देखो, कितने सूरज ढलते हैं ।
जननी से जो बेटे बिछड़े, धूप ताप में जलते हैं ।
जिनकी माँ मर जाती है वो, अन्धे आँखें मलते हैं ।
जेरज अण्डज सारे प्राणी, माँ आँचल में पलते हैं । 3

पंछी हैं मानव से अच्छे, मानव किस पर इतराता।
करे एक की इज्जत दूजा, दौलत से जब तक नाता।
सबसे करना प्रेम जगत में, पंछी को है मन भाता।
हे मानव तू मानव बन ले, करके सेवा बन दाता।4।

 

द्वितीय प्रस्तुति (दोहा सप्तक)
=====================
दाना देकर चोंच में, चिड़िया दे संदेश ।
सारे जग में प्यार हो, छोड़ छदम का वेश।1।

बच्चे अपने याद कर, चिड़िया भरी उड़ान।
सूरज चढ़ता देख ज्यों, पुष्प भरे मुस्कान ।2

धरती अंबर छान दें, मांगें ना हम भीख ।
धोखेबाजी छोड़ के, हमसे जीना सीख।3।

माँ की ममता है बड़ी, सबको लाड़ लड़ाय।

ऐसा संगम लोक में, देखा कहीं न जाय ॥4||

चीड़ा चिड़िया चोंच से, करते प्यार अपार।
मादा नर का जोड़ है, प्रेम भरा संसार।5।

चीं-चीं करती मैं फिरी, मिटी न मन की खाज।

भटकी तीनों लोक में, कुल बिना ना इलाज।6।

चीड़ा चिड़िया प्रेम से, बोलें मीठे बोल ।
सारे जग में प्रेम का, नाहीं कोई मोल।7।

(संशोधित)

*****************************
९. आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
गीत

===
बच्चा भूखे पेट कब, माँ को है स्वीकार।
जच्चे की बस तृप्तता,
ममता का आधार।

दुनिया के सौ दुख सहकर भी, दाना लेकर आती है।
भूख मिटाकर ही नन्हें की जीवन गीत सुनाती है।
त्याग समर्पण की मूरत को, दुनिया माता कहती है।
माँ के आँचल में ना जाने कितनी ममता रहती है।
कौन उऋण फिर हो सके,
ऐसा है उपकार।

नीड़ बनाए तिनका-तिनका, सुख से उसे सजाती है।
दुख की बंजर धरती पर खुशियों के पेड़ लगाती है।
संतति खातिर खुद अपना अस्तित्व भुलाए रहती है।
जिस प्रवाह में सुख बच्चों का उस धारा में बहती है ।
धन्य हुए माँ से मिले,
सांसों के ये तार |   ...  (संशोधित)
*************************
१०. आदरणीया नयना(आरती)कानिटकर जी
कुकुभ छंद--- पहली प्रस्तुति
==================
भोर मे मुंडेर पे आकर ,चूं-चूं करके जगाना
उछलकूद करके आँगन मे, तिनके चुन चुन कर लाना
तब सांझ सकारे कलरव का,गीत सुहाना बजता था
लौटती प्रकृति के आँचल से,सूरज भी तब ढलता था

चिडा-चिडी को चुगता दाना, चोंच संग चोच मिलाते
उछलकूद कर इस आँगन मे,अपना भी हक जतलाते
खतरे मे अस्तित्व तुम्हारा,सब मानव के कर्मो से
मोर-गिलहरी भी डरते है, अब आंगन में आने से

सिमट गई है ची-ची चू चू , मोबाइल रिंगटोन से
खत्म हुई आवाज तुम्हारी,चौबारे संग द्वार से
नहीं रहे अब वो वन उपवन,नही रही अब गोरैया
हरषाती थी सांझ-सकारे, कोलाहल संग चिरैया
************************
११. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी
कुकुभ छंद
========
गौरैया की छवि जो देखी, हाँ सचमुच धीरज आया |
नेह देखकर आपस का सच, दृश्य खूब ही मन भाया,
नन्ही सी चिड़िया को चिड़वा, यों दाना लगा चुगाने,
माता कोई शिशु को अपने, बैठी हो ज्यों दुलराने ||

कर्तव्य बोध हो जब मन में, तब चलती जीवन गाडी |
कभी खींचता लाडा जिसको , कभी खींचती है लाडी,
कर्मों का बँटवारा कर नित , हम आगे बढ़ते जाते,
इसीतरह चलता है जीवन, मंजिल भी इक दिन पाते ||

 

दोहे. (द्वितीय प्रस्तुति.)
लालन-पालन ठीक हो , स्वस्थ रहे नवजात |
चिड़ा-चिड़ी यह जानते, बहुत अजब यह बात ||

भूख लगी शिशु को मगर, माँ ने कर दी देर |
तिनका लेकर तब पिता , आया इस मुंडेर ||

चिड़िया की छवि देखकर, होता है विश्वास |
नन्हे शिशुओं को सदा , माँ से होती आस ||

दाना लाया है चिडा , धर माता का वेश |
मिटा रहा शिशु भूख जो, लिए नेक सन्देश ||

हरी दूब सा ही खिला, रहे सदा परिवार |
गौरैया सा ही मनुज, हो आपस में प्यार ||
********************
१२. आदरणीया राजेश कुमारी जी
दोहे
दाना लेकर चौंच में, माँ गोरैया आय|
भूखा चूजा खा रहा ,नन्ही चौंच मिलाय||

माँ से बढ़कर कौन है,माँ से कौन महान|
खुद भूखी रह ले मगर,सहन नही संतान||

माँ बच्चों के बीच में,ममता बड़ी विचित्र |
मात्र प्रेम का देखिये,कैसा अद्भुत चित्र||

नन्हे नन्हे पंख हैं,नन्ही नन्ही चाह|
थोड़ा होते ही बड़ा,माँ दिखलाती राह||

मानव हो या जानवर,समझे बस ये तर्क|
माँ की ममता में नहीं,दिखता कोई फर्क||

द्वीत्य प्रस्तुति
कुकुभ छंद
जंगल उपवन खेतों खेतों,ढूँढे दाना गौरैया|
चूँचूँ करता चिन्ना चुनमुन,चुग्गा लाती जब मैया||
दाना लेकर घर लौटे जब ,माँ को देख मचलता है|
नन्हे नन्हे पंख हिलाकर,फुदक-फुदक कर चलता है||

धूप मेह से रक्षा करती, छुपा नीड में रखती है|
खतरे का आभास हुआ तो,झट पंखों से ढकती है||
धीरे धीरे बड़ा हुआ तो,नन्हे को बाहर लाई |
फड़फड़ कर पंखों को अपने,उसको उड़ना सिखलाई||

माँ के पोषण की उष्मा से, पंखों में ऊर्जा पाई|
एक दिवस उड़ गया न लौटा,माँ को देकर तन्हाई||

सूना सूना देख घोंसला, दुखित हृदय से माँ आती|    

नई आस में नई डाल पर ,नवल नीड में लग जाती||   ... (संशोधित)

******************
१३. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
गीत
=======
माँ का रहता है सदा
सन्तानों से प्यार

खुदकी की सब इच्छाओं को,चाहे पूरा करना है
पर याद सदा वह रखती है, पेट पूत का भरना है 

सुबह सवेरे देकर खाना,बच्चों को वह चलती है

दिनभर रहती मग्न काम में,शाम काम में ढलती है
काम काज की चाह में
ममता है लाचार।

दिनभर बच्चा बिलख-बिलख कर,माँ को ढूँढा करता है
घर में खेल खिलौनों से भी, उसका मन तो भरता है
रहा नीड़ में ज्यों छोटा सा,पंछी इक तो घिरता है
माँ के बिन घर में बच्चा भी,खोया खोया फिरता है
माता करती काम ही
व बच्चा इंतज़ार

दिन ढलते ही माता को भी, बच्चों की याद सताए
खत्म काम को करते ही वह, घर दौड़ी-दौड़ी आए

चिड़िया ज्यों अपने बच्चे को,बस नेह बहुत करती है

माता भी अपने बच्चे का,यूँ पेट सही भरती है
माँ के दिल में है भरा
देखो नेह अपार
**************************
१४. आदरणीय पंकज कुमार मिश्र वात्स्यायन जी
कुकुभ छंद
=========
कहीं दूर से ढूंढ ढूंढ कर, के भोजन ले आती है।
चिड़िया अपने बच्चों पर कुछ, ऐसे स्नेह लुटाती है।।
माँ की ममता का प्रतीक यह, चित्र बहुत ही प्यारा है।
उसको लाख बधाई जिसनें, इसको यहाँ उतारा है।।1।।

संतति पालन कठिन तपस्या, चित्र सभी को बतलाता।
हर शरीर अपने जाये पर, अमित स्नेह है बरसाता।।
संतानों के सुख की खातिर, जीवन है माँ का सारा।
माँ को अपनी संतानों से, अधिक नहीं कोई प्यारा।।2।।

इस चिड़िया व उसके बच्चे, का ये प्यार बताता है।
माँ -संतति से बढ़कर जग में, और न कोई नाता है।।
दुनिया में है सुखी वही जो, माँ को शीश नवाता है।
कौन अभागा उस सा जग में, जो कि माँ को रुलाता है।।3।।

एक और सन्देश प्रियजनों, पंकज देना चाहे है।
गौरैया सब लोग पालिये, पंकज ढेरों पाले है।।
आँखों को सुख हर्ष मनस को, चिड़ियों से मिल जाता है।
ये ऐसा धन है प्रियवर जो, घर बैठे मिल जाता है।।4।।
***********************
१५. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
गीत-रचना

पुलकित होता खुशियों से मन, जब पक्षी प्रातः आते,

खुली हवा में उड़कर पक्षी, रोज सवेरे आ जाते |

 

मन को मिलता है सकून जब,, सुबह चिरैया दिख जाती

वन उपवन में रोज सवेरे, चुग्गा चुगने वह आती |

लगता है मधुमास उन्ही से, मन उल्लासित हो जाता,

जगता है विश्वास उन्ही से, प्यार ह्रदय में भर आता |

मधुर मिलन की कोमल आशा, मन में भाव जगा जाते,

पुलकित होता खुशियों से मन, जब पक्षी प्रातः आते |

 

डाल डाल पर जहाँ कोपलें नव आशाएं बुन जाती

तभी चहकती बैठें चिड़ियाँ,खुश रहना वह सिखलाती |

हैरत में फिर होती चिड़िया, देख दानवी कृत्यों को

झूठी शान फरेबी दुनिया, पक्षी सहते जुल्मों को |

परम पिता के संदेशों को, पक्षी हमको बतलाते,

पुलकित होता खुशियों से मन, जब पक्षी प्रातः आते |

 

दाना चुगती फिर उड़ जाती, बच्चे के मुहं में देती

मन में पीड़ा के आँसू वह, कभी नहीं आने देती |

हंसकर जीवन कैसे जीते, हमको भी वह बतलाती

चूँ चूँ करती गाना गाती,  अपने मन में इठलाती |

सुख दुख में समभाव रहे हम,यह भी पक्षी सिखलाते

पुलकित होता खुशियों से मन, जब पक्षी प्रातः आते |

(संशोधित)
*************************
१६. आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी

मैं सभ्यता यहाँ, संस्कृति तू, पोषित करता हर दाना,
साध्य यहाँ तू, साधन हूँ मैं, भाग्य रहा खोना-पाना।

बुरे हाल में तुझको पाता, कुछ तो अच्छा कर जाता,

आत्मा तू, मैं तन कहलाता, फूल खिलाकर महकाता।

चिड़ी आज की संस्कृति है तू, है भूख-प्यास की मारी,
मानव-जीवन दर्पण जैसी, तू कलयुग की लाचारी।

(संशोधित)
**********************

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ सर, "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 64 की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं त्वरित संकलन हेतु हार्दिक आभार. 

संशोधन हेतु निवेदन है- "ये सांसों के तार ।" के स्थान पर "सांसों के ये तार ।"

यथा निवेदित, तथा संशोधित .. 

बेहतरीन भावपूर्ण चित्र पर आधारित छंदोत्सव-64 के सफल संचालन व त्वरित संकलन हेतु हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और आभार आदरणीय मंच संचालक महोदय जी। मेरी अभ्यास रचना को संकलन में स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद। सभी रचनाकारों को हृदयतल से बहुत बहुत बधाई।
मेरी रचना के पहले छंद में क्या इस तरह सुधार किया जा सकता है? यदि सही हों, तो कृपया प्रतिस्थापित करियेगा।-

मैं सभ्यता यहाँ, संस्कृति है तू, पोषित करता हर दाना,
साध्य यहाँ तू, साधन मैं, दोष (भाग्य) रहा खोना-पाना।

- कृपया // भूख-प्यास की मारी,// के स्थान पर यह प्रतिस्थापित कर दीजिएगा-

है भूख-प्यास की मारी,

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी,  आजका पूरा दिन व्यस्त रहा. इलाहाबाद में एक साहित्यिक गोष्ठी तो थी ही, एक सामाजिक कार्यक्रम भी था, जहाँ मैं विशिष्ट अतिथि था. उसके बाद अंजुमन प्रकाशन से होता हुआ अभी आधा घण्टा पहले घर पहुँचा हूँ. 

आयोजन में आपकी गरिमामय उपस्थिति पटल को भी गरिमा प्रदान करती है. आपका सदा स्वागत है. 

आपने सुधार हेतु जो दो पंक्तियाँ प्रस्तुत की हैं, कृपया उनकी मात्रिकता भी देख लें. चराणान्तों के हिसाब से तो दोनों पंक्तियाँ सही हैं.

मैं  प्रतीक्षारत हूँ.  

जी शुक्रिया, हम सभी आप वरिष्ठजन की व्यस्तता व नेटवर्क समस्या से वाक़िफ़ हैं। मोबाइल फोन की टच स्क्रीन सही टाइप करने में बाधा कर रही है। पुनः मात्रिकता सही कर छंद प्रेषित कर रहा हूँ। दोष या भाग्य में जो अधिक प्रभावी हो, उसे ही लीजिएगा-
मेरी रचना के पहले छंद में क्या इस तरह सुधार किया जा सकता है? यदि सही हों, तो कृपया प्रतिस्थापित करियेगा।-

मैं सभ्यता यहाँ, संस्कृति तू, पोषित करता हर दाना,
साध्य यहाँ तू, साधन हूँ मैं, दोष (भाग्य) रहा खोना-पाना।

- कृपया // भूख-प्यास की मारी,// के स्थान पर 14 मात्राओं के साथ यह प्रतिस्थापित कर दीजिएगा-

है भूख-प्यास की मारी,

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी,  यथा निवेदित तथा संशोधित ..

देर रात्रि को भी संशोधन प्रतिस्थापित करना मंच के प्रति आपके समर्पण व प्रतिबद्धता को प्रमाणित करता है। सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री सौरभ पाण्डेय जी।
श्रद्धेय सौरभ सर सादर नमन!छंदोत्सव-64 के सफल संचालन के लिए सादर हार्दिक बधाई एवंत्वरित संकलन प्रस्तुति पर हार्दिक आभार।
श्रद्धेय सर 13वीं रचना में लाल पंक्तियों को कृपया निम्न से विस्थापित कर कृतार्थ करें

खुदकी की सब इच्छाओं को,चाहे पूरा करना है
पर याद सदा वह रखती है, पेट पूत का भरना है

हरे रंग की पंक्ति व उससे निचली पंक्ति को निम्न से विस्थापित कर कृतार्थ करें


दिन ढलते ही माता को भी,बच्चों की याद सताए

खत्म काम को करते ही वह, घर दौड़ी-दौड़ी आए

सादर ।

आदरणीय सतविन्द्र जी, आपकी रचना में संशोधित पंक्तियों को प्रतिस्थापित कर दिया गया है.

बच्चों की याद सताए.. इस विन्दु पर एक तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूँ. वह यह है कि जिन चरणान्तों को समकल रखना है, जैसाकि कुकुभ या ताटंक छन्द हैं, उनके चरणों के अन्त के निकट त्रिकल नहीं बनने देना चाहिए. वर्ना मात्राओं के सही होनेके बावज़ूद वाचन-प्रवाह में अटकाव होने लगता है. आयोजन में भी आदरणीया राजेश कुमारी जी की रचना की टिप्पणियों मेंइस तथ्य पर चर्चा हुई थी. संबवतः आप उसे देख नहीं पाये हैं. चूँकि आप अभ्यासकेअभी प्रारम्भिक दौर में हैं अतः अभी के लिए आपकी संशोधित पंक्तियाँ स्वीकार्य हैं.

शुभ-शुभ

 

आदरणीय सौरभ सर त्वरित संकलन के लिए बहुत 2 आभार कृपया मेरी रचना में निम्न प्रकार से संशोधन कर दीजिये -

'अभी तो बस भरपूर ले अपना यह आहार' के स्थान पर 

ठहर जरा भरपूर ले  अपना यह आहार

सादर निवेदित 

आदरणीया वन्दना जी, यथा निवेदित, तथा संशोधित....

कृपया ’बहुत 2’  को ’बहुत-बहुत’ लिखा करें. 

आदरणीय सौरभ जी , "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 64 की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं त्वरित संकलन हेतु हार्दिक आभार|

चित्र बहुत अच्छा था |

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"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
8 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

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