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ग़ज़ल -तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें ( गिरिराज भंडारी )

तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें

1222   1222   122  

*****************************
ये रिश्ते भी न बदतर होके लौटें

तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें

 

ये चट्टानें , न ऐसा हो कि इक दिन

मैं टकराऊँ तो कंकर हो के लौटें

 

इसी उम्मीद में कूदा भँवर में

मेरे ये डर शनावर हो के लौंटें  

 

बनायें ख़िड़कियाँ दीवार में जब

दुआ करना, कि वो दर हों के लौटें

 

दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की

मै छोड़ आया कि वो घर हो के लौटें

 

कुछ इक सूखी निगाहें ऐ ख़ुदा, मैं

रखूँ उम्मीद क्या , तर हो के लौटें ?


नहीं कुछ भी यक़ीं , पर भेजता हूँ

मेरे ये मसअले सर हो के लौटें

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Ashok Kumar Raktale on September 11, 2016 at 7:19pm

दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की

मै छोड़ आया कि वो घर हो के लौटें........वाह ! वाह !

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 10:09am

आदरणीय बृजेश भाई,सराहना के लिये आपका  शुक्रिया।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 10, 2016 at 10:48am

शानदार ग़ज़ल आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:14am

आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:13am

आदरणीया अलका जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:12am

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:11am

आदरणीय विजय भाई , भावों और विचारों की सराहना के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:10am

आदरनीय मनन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:09am

आदरनीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2016 at 8:09am

आदरनीया कल्पना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

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