For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212

इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,
देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,

टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,
वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,

दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,
बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,

जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,
आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,

लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,
प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।


-आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'


-: मौलिक एवं अप्रकाशित :-

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 3:59pm

आ. श्री  गिरिराज भंडारी जी आभार और शुक्रिया आपका!!! आप सभी अग्रजों ने जो भी जो कहा वो आगे से ध्यान में रहेगा। सादर !!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:41am

आ.श्री सुरेश जी आभार !!!! शुक्रिया!!! मेरी इ स रचना को पढ़ने के लिए आभार!!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:36am

आदरणीय श्री अशोक कुमार जी धन्यवाद!!! हौसला अफज़ाई के लिए!!! मैं समझाइश का अनुसरण ज़रूर करूंगा!!! सादर!!!!

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 21, 2016 at 9:31am

आदरणीय अग्रज श्री समर कबीर जी...तहेदिल से आपका मैं आभारी हूँ... आपने मुझे मेरी ग़लती बताई जिसका मैं आगे ज़रूर ध्यान रखूँगा!!! OBO परिवार में शामिल होना सफ़ल हो रहा है... ये सब बारीकियाँ मुझे सीखने को मिल रहे है!!!
आप सभी को कोटिशः धन्यवाद!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 9:22am

आदरणीय आशीष भाई , गज़ल अच्छी कही , हार्दिक बधाइयाँ ।  मतले मे काफिया का निर्धारण जो हुआ सभी शेर मे निभा नही पाये हैं । मै आदरणीय समर भाई की बातों से सहमत हूँ ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 20, 2016 at 10:29pm

आदरणीय आशीष जी सादर. सुंदर प्रयास हुआ है गजल पर. काफिये पर आदरणीय समर साहब ने कहा ही है. सादर.

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 19, 2016 at 2:06pm
आदरणीय श्री आशीष जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 3:07pm
जनाब आशीष सिंह ठाकुर'अकेला'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
मतले के सानी मिसरे और दूसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है,आपने 'कर''डर''घर'काफियों के साथ 'फिर'और'गिर'के क़ाफ़िए लिये हैं जो गलत हैं,देखियेग ।
Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 17, 2016 at 11:15am

कोटिशः धन्यवाद आ. श्याम नारायण वर्मा जी हौसला अफ़ज़ाई  के लिए !!!

Comment by Shyam Narain Verma on September 17, 2016 at 10:46am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service