आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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इस बार पिछली गोष्ठियों जितने श्रम में चूक हो गयी... यह तो व्हाट्सएप्प पर कबीरदास जी की रचना जैसी लग रही है
अच्छी कथा | बधाई स्वीकारें आदरणीय |
हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी! प्रधान संपादक जी की टिप्पणी पर अवश्य ध्यान दें। सादर!
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी।बेहतरीन प्रस्तुति।क्या चौका मारा है, जब मरी गाय नहीं खा सकती तो मरे हुए पितर कैसे का लेते हैं।बहुत सुंदर।
अधखिले (परदे के पीछे )
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“माँ ! तुम बात करो न पापा से पता नहीं कुछ दिनों से क्या भूत सवार है बगीचे में पौधों को उखाड़ने में लगे हुए हैं कहते हैं कुछ अनचाहे पौधे अधखिले फूलों को निगल रहे हैं ” कहते हुए वचन ने अखबार माँ के हाथ में पकड़ा दिया |
“देखिये जी अखबार में अपने वचन का फोटो आया है देखो जो अपने सोनू के स्कूल में मौत बाँटते थे उन पांच मौत के सौदागरों को धर दबोचा है हमारे बेटे की टीम ने अब अपने सोनू की आत्मा को शान्ति मिलेगी ये देखो आशीर्वाद नहीं देंगे अपने बेटे को” ? माँ ने चिहुक कर वचन के पापा को अखबार दिखाया |
पापा ने एक नजर अखबार पे डाली और अपने काम में लग गए |
वचन पापा के पास उकडूँ बैठ गया और कुछ देर उनको देखता रहा पापा उखड़े हुए पौधे की जड़ को घूरते हुए ढेर में रख ही रहे थे कि वचन अचानक उनके हाथ को पकड़कर बोला-
“पापा मैं समझ गया, मैं अभी यही तक पँहुचा हूँI" पौधे के जड़ से ऊपर वाले भाग को छूकर वचन आगे बोला"
"मैं कसम खाता हूँ जब तक इस छुपे हुए भाग तक न पंहुच जाऊँ तब तक मैं कोई पुरस्कार ग्रहण करने का हकदार नहीं हूँ”
पापा की आँखों से लुढकते हुए दो आँसू नीचे मिटटी में समा गए और बगीचे के अधखिले फूल मुस्कुरा उठे|
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मौलिक एवं अप्रकाशित
विषय पर आधारित सुंदर कहानी।
आद० आशीष त्रिवेदी जी ,आपको लघु कथा अच्छी लगी बहुत बहुत आभार आपका |
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