आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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एवरीथिंग इज़ फेयर
किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे डॉ. शशांक ने वाइन का पूरा गिलास एक ही सांस में अंदर किया और फिर सिगार का क़श लगाने के बाद कोर्टरूम की यादों में खो गए।
"जज साहब, इस हैवान को फांसी की सज़ा मिलनी ही चाहिए।" वक़ील ने जज से ज़ोर दे कर कहा।
"तुम्हें कुछ कहना है?" जज ने कटघरे में खड़े आरोपी से पूछा।
उसने कोर्टरूम की तरफ़ देखा और कहा, "मेरे दोस्त, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"
डॉ. शशांक अभी भी सोफ़े पर बैठे हुए थे और आज कोर्टरूम में जो भी हुआ उसे पूरी तरह महसूस कर रहे थे।
जज ने अपना फैसला सुनाया, "ये अदालत मिस्टर मिहिर को उनके मित्र डॉ. शशांक की बीवी के साथ अवैध सम्बन्ध रखने और फिर राज़ खुल जाने के डर से उनका क़त्ल करने के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाती है।"
तभी डॉ. शशांक के फ़्लैट की घण्टी बजती है। वे दरवाज़ा खोलते हैं। बाहर जाह्नवी थी जो बहुत घबरा रही थी। वह अंदर आती है और उनसे लिपट कर रोने लगती है।
"तुम चिन्ता क्यों करती हो? मैं हूँ न।" डॉ. शशांक ने जाह्नवी को ढांढस बंधाते हुए कहा।
"क़ाश मैं तुम्हारी बात मान लेती। तुमने मुझसे कहा था कि मिहिर से शादी मत करो, वह तुमसे प्यार नहीं करता मग़र मैंने तुम्हारी एक भी नहीं सुनी। तुम मुझे हमेशा से चाहते थे लेकिन मैंने कभी तुम्हारी क़द्र नहीं की। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।" जाह्नवी ने सिसकते हुए कहा।
डॉ. शशांक साइकोलॉजी के प्रोफेसर थे जिनके मष्तिष्क में भविष्य की अब एक नयी योजना आकार ले रही थी – जेल में बंद आजीवन कारावास के क़ैदी मिहिर ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने आलमारी की तरफ़ देखा जहाँ पर रखी सम्मोहन की किताबें बड़े रहस्यमयी ढंग से डॉ. शशांक की तरफ़ देख कर मुस्कुरा रही थीं। जाह्नवी अभी भी उनकी बाँहों में थी। उन्होंने उसे कस कर पकड़ा और चूमने लगे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
बहुत ही सुन्दर लघुकथा है भाई महेंद्र कुमार जी, प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय हुआ हैI मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकार करेंI कुछ सुझाव देने की हिमाक़त कर रहा हूँ, शायद आपको पसंद आयें:
//उसने कोर्टरूम की तरफ़ देखा और कहा, "मेरे दोस्त, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"// क्या यह बात कोर्टरूम में बैठे शशांक को संम्बोधित करते हुए नहीं कहनी चाहिए थी?
//डॉ. शशांक साइकोलॉजी के प्रोफेसर थे// यह ज़िक्र कथा के अंत में नहीं आना चाहिए था, प्रारंभ में ही इसका इशारा कर देना शायद बेहतर होताI
//जिनके मष्तिष्क में भविष्य की अब एक नयी योजना आकार ले रही थी – जेल में बंद आजीवन कारावास के क़ैदी मिहिर ने आत्महत्या कर ली।// इसका ज़िक्र न होता तो अंतिम पंक्तियाँ और चुस्त हो जातींI
//उन्होंने उसे कस कर पकड़ा और चूमने लगे।// यह पंक्ति भी अनावश्यक हैI
हा हा हा... आपके सुझाव हमारे लिए संजीवनी के समान हैं सर! देते रहा करें। लघुकथा आपको अच्छी लगी इसके लिए हृदय से आभार। संकलन में स्थान पाने पर लघुकथा का संशोधित रूप आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा, सादर।
आदाब आदरणीय समर सर! लघुकथा आपको पसंद आयी इसके लिए हृदय से आभार, सादर!
सस्पेंस थ्रिलर वाह ,,अच्छी लगी आपकी कथा ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय महेंद्र जी
आदरणीया प्रतिभा जी, आपको लघुकथा पसंद आयी इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर!
बहुत शानदार लघुकथा आदरणीय महेंद्र कुमार जी
आपका हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी, सादर!
मोहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद भाई जी!
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