For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आइना ये पत्थरों की मार कैसे सह गया (ग़ज़ल 'राज ')

2122  2122  2122  212

इक मुहब्बत का महल कब चुपके चुपके ढह गया

बिन किये आवाज सब आँखों का काजल कह गया

 

अनमनी सी वो अकेली रह गई किश्ती खड़ी

पाँव के नीचे से ही सारा समन्दर बह  गया

 

वो खुदा भी उस फ़लक से देख कर हैरान है

आइना ये पत्थरों की मार कैसे सह  गया

 

ठोकरों ने ही तराशे वो पशेमाँ पंख फिर

ताकते परवाज़ से पीछे गुज़शता रह गया

 

फूल से भी जो हथेली सुर्ख  होती थीं  कभी

उस हथेली में पिघल कर आज सूरज बह गया

--------------मौलिक एवं अप्रकाशित  

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 5:27pm

आद० अर्पणा शर्मा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 4:20pm
एक सुंदर गज़ल। बधाई एवं सादर नमन आ.राजेश कुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 11:20am

आद० रामबली गुप्ता जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by रामबली गुप्ता on October 10, 2016 at 4:06am
वाह वाह सारे शेर सुंदर हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी।दिल से बधाई लीजिये। 'उस फलक' के बारे में आद0 समर भाई साहब से सहमत हूँ।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 8:00pm

आद० धर्मेन्द्र सिंह जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार आपका | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 7:59pm

आद० सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 7:58pm

आद० श्याम नारायण वर्मा जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 7:57pm

आद० समर कबीर भाई जी, ग़ज़ल आपकी कसौटी पर खरी उतरी आपको पसंद आई दिल से आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपकी इस्स्लाह का सदैव स्वागत है आपने सही कहा  अब होना चाहिए अभी तो मूल रचना में सुधार लिया है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 7:54pm

आद० सुरेश कुमार कल्याण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2016 at 7:53pm

आद० सुशील सरना जी,उत्साह वर्धन करती हुई आपकी इस प्रतिक्रिया की बेहद शुक्रगुजार हूँ मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभार | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service