मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना
तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे
होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना
ले लेगी जान मेरी तेरी अदा कसम से
इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना
पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना
मैं खुश रहूँ वहाँ पर है तेरे हाथ में ही
चेहरे को अपने हर दम खिलता गुलाब रखना
मेरा हरेक लम्हा तेरी अदा के सदके
बांहों में चाँद दिल में इक आफ़ताब रखना
--------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० अलका जी ,ग़ज़ल पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया की बेहद शुक्रगुजार हूँ |
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर रचना है, हार्दिक बधाई । सादर ।
आद० सुरेश कुमार जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आपका बहुत बहुत आभार |
आद० डॉ.गोपाल भाई जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० वासुदेव अग्रवाल जी, आपका तहे दिल से शुक्रिया |
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
-----------------------------क्या बात है आ० दीदी श्री
आद० समर भाई जी , ग़ज़ल पर आपकी मुहर लग गई मेरा लिखना सफल हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |
आद० डॉ० पवन मिश्रा जी,आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
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