खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
अलकन में नम शीत मलय की
बाँध पंखुरी
पंकज की पाती से भरकर
मेह अंजुरी
ऊषा की लाली से लाल
हथेली रचकर
कंचन के पर्वत से पीली
धूप खुरच कर
कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
सुरभित कुसुमो के सौरभ को
भींच परों में
चार दिशाओं के गुंजन को
सप्तसुरों में
बन बाँसुरिया नेह प्रणय की
करूँ पैरवी
तेरे कानों में आ घोलूँ
राग भैरवी
साँसों की सरगम को झंकृत कर जाऊँगी
अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी
------------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जी
हर नवगीत वस्तुतः एक गीत ही होता है, लेकिन हर गीत नवगीत नहीं होता - देवेंद्र शर्मा ’इन्द्र’ (नवगीत विधा के पुरोधा)
जी जरूर वैसे पहले पढ़े भी हैं किन्तु जब नवगीत पर पूर्णतः फोकस करूंगी तब अवश्य इनमे से बाल की खाल निकालूंगी हाहाहा ..
आदरणीया राजेश जी, नवगीत विधा को लेकर यदि आपके मन में चाहत उमड़ी है तो यह सर्वथा स्वागत योग्य चाहत है. चूँकि यह विधा समझ, भावबोध और तार्किकता की दृष्टि से तनिक अलग किस्म की विधा है, तो रचनाकार को सदा सचेत रहना पड़ता है. सर्वोपरि, यह विधा मानवीय पहलुओं की विशिष्ट दशाओं को आक्षरित करने की विधा है. जिसमें अधुना जीवन के पक्षों को अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होते बिम्बों से उभारा जाता है.
जिस तरह से आपकी रचना में एकांगी भावदशा का सहज प्राकट्य हुआ है, और, तत्सम शब्दों की भरमार हुई है, आपकी रचना वहीं नवगीत से छिटक जाती है. आप इस तथ्य पर गहरे से सोचियेगा.
दूसरे, मैंने जो आलेख आदि लिखे हैं वो किनके लिए लिखे हैं ? और कोई न पढ़े, कमसेकम रचनाकार तो पढ़ें ! बिना सार्थक और आवश्यक अध्ययन के कौन सी विधा सधने वाली है ? वह भी नवगीत और जनगीत जैसी विधाएँ ?
इस मंच पर भी फोरम समूह में ’गीत, नयी कविता और नवगीत’ पर आलेख पड़ा है ! दो भागों में ! कमसेकम इन तीनों से परिचयात्मक मिलन तो कर ही लीजिये.. :-))
हा हा हा हा..
सादर
आद० सौरभ जी ,प्रस्तुति पर आपका आना तारीफ करना और विधा के विषय में संशय दूर करना अच्छा लगा |लिखते वक़्त भी यही सोच रही थी की ये गीत में आएगा या नवगीत में आएगा भाव सब बिम्बात्मक लिए हैं इस लिए सोच रही थी की शायद ये नवगीत की श्रेणी में आएगा खैर आपने संशय दूर कर दिया | आपका बहुत बहुत आभार |
आद० अलका जी आपको यह गीत पसंद आया आपका दिल से बहुत- बहुत आभार |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी प्रस्तुति से मन प्रसन्न है. अत्यंत गहनता से भावों को शाब्दिक करने का प्रयास हुआ है. साथ ही, मैं आदरणीया अलका जी कहे से पूरी तरह सहमत हूँ, जिन्होंने आपकी रचना को गीत कह कर ही सम्बोधित किया है, बावज़ूद आपके ’नवगीत’ लिखने के ! आदरणीया, आपकी रचना शुद्ध गीत विधा की रचना है.
सादर
वाह ....बहुत सुंदर गीत .... राजेश कुमारी जी बधाई ..
ब्रिजेश कुमार बृज जी ,आपको नवगीत पसंद आया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |
वाहह आदरणिया क्या शानदार लेखनी चली है....अतीव सुंदर
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