For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय मित्रों !
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! इस प्रतियोगिता से सम्बंधित आज के इस चित्र में आधुनिक महानगर के मध्य यह मनभावन प्राकृतिक दृश्य दिखाई दे रहा है जिसमें प्रदर्शित किये गए पक्षियों में खासतौर से मयूर का सौन्दर्य उल्लेखनीय लगता है जिसकी यहाँ पर उपस्थिति मात्र से ही इस स्थान की ख़ूबसूरती कई गुना बढ़ गयी है और तो और यह जब नृत्य करता है तो इसके नृत्य की अदभुत छटा देखते ही बनती है | काश! हम भी अपने-अपने स्थान को भी इसी तरह हरा-भरा बना पाते तो ऐसे विहंगम दृश्य हर जगह देखने को मिलते और हमारी यह धरती निश्चय ही स्वर्ग बन जाती .........तब हमारे सामने ना तो पानी की कमी की कोई भी समस्या होती और न ही इन पक्षियों के लिए उपयुक्त निवास स्थान की कोई कमी ....... हम साहित्यकारों के लिए मयूर या मोर का स्थान तो और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है  क्योंकि  अधिकतर कवियों नें श्रृंगार रस की कविताओं में अक्सर इसका उल्लेख किया है |
आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम .........और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ........क्योंकि........अब तो....मन अधीर हो रहा विहंग की तरह ........:) 

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

Views: 13821

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सही कहा जी.

 

निवेदन:  

इस  सौरभ को इक  सौरभ भर रहने दें

कुछ और कहा तो धूमिल होगा व्योमगा.

वाकई बहुत खूबसूरत भाव युक्त कुण्डलिया रचा आपने ........ इस सार्थक प्रयास के लिए हृदय से बधाई व साधुवाद स्वीकार करें ! फिर भी कुंडली के नियमों व गेयता के हिसाब से कृपया इसे एक बार फिर से चेक कर लें......जब मैंने इसे गाने का प्रयास किया तो निम्नलिखित बिंदु समझ में आये .....

१. चिर -सुहागन से गेयता प्रभवित हो रही है इसके स्थान पर "सुहागन चिर हो धरती" अधिक उपयुक्त लग रहा है

२ . चौथी पंक्ति में "किल्लोल" में एक मात्रा बढ़ रही है इसके स्थान पर "किलोल" अधिक उपयुक्त है और इसी पंक्ति में  "रहे बगिया परती" (१२ मात्रा )के स्थान पर "रहे ना बगिया परती" (तेरह मात्रा ) ही ठीक रहेगा ....

३. "वसुधा से बिन माँगे, हमने पाया कितना" (१२ , १२)  में ११ व १३ मात्रा का बंटवारा नियमानुसार सही नहीं हो पा रहा है यद्यपि इसकी गेयता में कोई कमी नहीं है |

४ ठीक इसी प्रकार से "अधिक नहीं, दे पायें उतने, पाया जितना .." में भी ११, १३ मात्राओं का बंटवारा सही नहीं हो या रहा यद्यपि गेयता इसकी भी ठीक है |

नियमों के हिसाब से इसे चमकाने का एक प्रयास मैंने भी किया है, इसमें यदि कोई त्रुटि लगे तो कृपया इंगित करें .......

//जितना हो  उतना करें, धरती का सम्मान.

नगर-गाँव-थल-वन-शिखर, हरियाली का मान 

हरियाली का मान, सुहागन चिर हो धरती

पक्षी करें किलोल,  रहे ना बगिया परती

बिन माँगे भूदेवि, आप से पाया कितना

अधिक नहीं दें आज, दे सकें पाया जितना ..//

सादर............

भाई अम्बरीषजी.. आपने तो जैसे उबार लिया. कृतकृत्य हुआ..

इसमें कोई संदेह नहीं कि छंद में विसंगतियाँ थीं.  प्रयास किया जाय तो आखिरी दोनों पंक्तियों में अभी भी बहुत सुधार की गुंजाइश है.

वस्तुतः, आखिरी दो पंक्तियों में निम्नलिखित उत्कर्ष-भावों  की प्रतिच्छाया है -

जीवने यावदा दानम् स्यात प्रदानम् ततोऽधिकम्

इत्तेषा प्रार्थना  अस्माकं   भगवन्   परिपूर्यताम..

 

सादर.

आपका कथन सत्य है मित्र  ............इस श्लोक के माध्यम से इन गहन भावों को स्पष्ट करने के लिए हृदय से आभार.....सादर ......
सौरभ जी एक सार्थक प्रयास हेतु आपको और सम्यक संशोधन हेतु अम्बरीश जी को साधुवाद. प्रोत्साहन के लिए सराहना के साथ-साथ सुधर भी होना ही चाहिए.

सही कहा आपने आचार्यजी.

मात्रिक पद्यों की गरिमा के प्रति नमनशील हो आवश्यक सुधार के लिये तत्पर होना सीखने-सिखाने की परम्परा के निर्वहन मूल पद है.  

 

संपुट :     कथ्य और मात्रा के बीच की रस्साकशी उतनी ही प्राचीन है जितना कि अपने आदर्श वांङ्गमय.

आर्ष-वाक्यों का परिचलन क्या कोई नया चोंचला है..???  हा हा हा  . :-)))

 

 सादर.

 

 

बहुत सुंदर कुंडलिया है, अम्बरीष जी के परिवर्तनों ने चार चाँद लगा दिए हैं। सौरभ जी को बहुत बहुत बधाई
धर्मेंद्र जी आप सच कह रहे हैं |
बहुत-बहुत धन्यवाद, धर्मेन्द्रजी
कुण्डली के माध्यम से सुन्दर भावाभिव्यक्ति |

धन्यवाद आदरणीय आलोकजी.

भाई अम्बरीषजी, गणेशभाई, प्रवरतम योगराज भाईसाहब तथा  सुधी पाठकों के सामुहिक सद्-प्रयास ने  अपलोड हो रही रचनाओं  के लिये अभिनव उत्प्रेरक का कार्य किया है.  कहना न होगा, प्रस्तुत  की गयी कई अभिव्यक्तियों में आवश्यक गठन और छदों में अपेक्षित कसाव आ गया है.

जारी अभिव्यक्ति-अपलोड की प्रक्रिया में न केवल उत्साह बल्कि पठन-पाठन, सीखने-सिखाने का क्रम तथा कोशिशों में  सतत सुधार की प्रक्रिया का निर्बाध बने रहना भी उतना ही आवश्यक है.  तोही प्रतिफल और सीखने-समझने की प्रक्रिया के कुछ मायने हैं.  तब ही प्रतिफल ज्ञानवर्द्धक ही नहीं अपितु रोचक  भी होने लगेगा. .. इस आशय का अनुमोदन आदरणीय आचार्यजी "सलिल" ने भी किया है.

 

इसीके मद्देनज़र मैंने अपनी अपलोडेड कुण्डलिया के मूल-भाव  को अविकल रखते हुये  प्रयुक्त शब्दों में हेर-फेर किया है. 

इस हेर-फेर के मूल  में भाई अम्बरीषजी का सुझाव ही परिलक्षित होगा.  किन्तु, चिर-सुहागन हो धरती  को मैंने ज्यों का त्यों रहने दिया है.  इस पंक्ति के प्रति भाई योगराजजी की संवेदनशीलता मुखरित हो गयी थी.  यों भी,  गेयता या मात्रा के लिहाज से  इस क्लॉज में मुझे कहीं विशेष अवरोध प्रतीत नहीं हुआ.

 

***          ***

जितना हो  उतना करें, धरती का सम्मान.

नगर-गाँव-थल-वन-शिखर, हरियाली का मान 

हरियाली का मान, चिर-सुहागन हो  धरती

पंछी करें किलोल, रहे ना बगिया परती 

बिन माँगे इन्सान, धरा से पाये इतना

अधिक सही ना किन्तु, काश,  दे; पाये जितना.

***          ***

 

आपकी राय सादर अपेक्षित है. 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सादर अभिवादन।"
45 minutes ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
16 hours ago
Admin posted discussions
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
yesterday
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service