For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल(हैं उभरते आजकल यूँ रहनुमा घर-घर)

2122 2122 2122 2
हैं उभरते आजकल यूँ रहनुमा घर-घर
अब सियासत का उतारा हो गया घर-घर।1

अब न पढ़ना है, न कुछ करना जरूरी ही,
बस वजीरों का मुहल्ला बन चला घर-घर।2

गलतियों से आपकी लाला मिनिस्टर हैं
कुर्सियों पर आजकल चिपटा पड़ा घर-घर।3

अँगुलियों पर नाचकर रहबर बना है वो
बढ़ गया कुनबा बड़ा इतरा रहा घर-घर।4

रोशनी की खोज में लड़ कर मरे पुरखे
बस अँधेरा ही यहाँ छितरा रहा घर-घर।5

जोड़ने की बात के थे मुंतजिर सारे
तोड़ने का सिलसिला बस चल रहा घर-घर।6

नासमझ अब दूर करते नाखुदा मसला!
बेवजह जो बेपरों के सिर चढ़ा घर-घर।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 10, 2016 at 11:51am
आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, गजल के भाव से तारतम्य स्थापित कर मेरी हौसला आफजाई करने के लिए आपका शुक्रगुजार हूँ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 7, 2016 at 7:24pm
आदरणीय मनन जी वर्तमान का सजीव चित्रण करती शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करिं सादर
Comment by Manan Kumar singh on November 6, 2016 at 2:20pm
आभारी हूँ आपका
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 5, 2016 at 9:44pm
खूबसूरत ग़ज़ल...बधाइयाँ
Comment by Manan Kumar singh on November 4, 2016 at 7:04pm
मोहतरम समर कबीर जी,हौसला-आफजाई के लिए आदाब एवं शुक्रिया कुबूल फरमायें।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2016 at 5:17pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service