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गीतिका/हिंदी गजल(आनंदवर्द्धक छंद)

देश से अपने हमें तो प्यार है
देशद्रोही मत बनो, धिक्कार है।1

धूप-धरती सब मिले तुझको यहाँ
देश की तुझको सखे दरकार है।2

जड़ बिना पौधा कहीं पनपा नहीं
देश की माटी बड़ा आधार है।3

चल रहे हैं बेवजह के चुटकुले
भेदियों की हो गयी भरमार है।4

सनसनाते हैं यहाँ नारे बहुत
'भारती'माँ की कहो जयकार है।5

कैद तेरी बात अब क्यूँ हो गयी?
रे! जवानी को बड़ी ललकार है।6

रोशनी पूरब से' देखो हो रही
झाँक लो अंदर यही मनुहार है।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2016 at 11:13pm
क्षमा कीजिएगा, मुझे अधिकतर युग्म समझने होंगे आपके मार्गदर्शन से।
Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 9:55pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शहजाद उस्मानी जी। दुविधावाली पंक्तियों को इंगित करेंगे तो शायद मैं कुछ कह पाऊँ,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 9:53pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय ब्रजेश ब्रिज जी।
Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 9:53pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर जी।
Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 9:51pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय राम बली जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2016 at 6:43pm
इस खूबसूरत देश भक्तिपूर्ण गीतिका के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2016 at 6:18pm
यह बहुत बढ़िया गीतिका ही हुई है। सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। कुछ युग्मों में मुझे दोनों पंक्तियों में तालमेल कम सा महसूस हुआ है। हो सकता है कि मैं समझ नहीं पाया।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2016 at 5:15pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,बढ़िया गीतिका हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 5:12pm
वाह बहुत खूब आद0 मनन कुमार जी। सुंदर गीतिका हुई है बधाई लीजिये।सादर

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