For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

221 2121 1221 212

किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले

फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले

 

दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं

हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले

 

नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का दोस्तो

आईना जो दिखाऊँ तो बस बद्दुआ मिले

 

ख़्वाहिश कहाँ रही मुझे महलों की ऐ ख़ुदा

बस ज़ेरे-आसमाँ तेरा ही आसरा मिले

 

ढहने लगी हैं आज अदब की इमारतें

इतिहास मलबे में यहाँ कुचला हुआ मिले

 

धरती थमी-थमी है फलक भी झुका-झुका

मैं मुंतज़िर हूँ अब कि कज़ा मुझसे आ मिले

 

इंसान खो गया कहीं आभासी दुनिया में

अब तर्जनी से अपनी, सुकूँ ढूँढता मिले

 

Meaning:

फ़िरक़ापरस्ती - सम्प्रदायवाद, हक़बयानी – सच कहना, अक़ीदत - श्रद्धा,

ज़ेरे-आसमाँ - आसमाँ के नीचे, अदब – साहित्य, मुंतज़िर – इंतज़ार में, कज़ा – मौत

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 887

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:52am

बहुत-बहुत शुक्रिया आ. राजेश दीदी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2016 at 6:19pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई शिज्जू भैया दिल से दाद प्रेषित है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:45pm

आ. मिथिलेश जी, जनाब तस्दीक अहमद साहिब, आ. कालीपद सर, आ. गिरिराज सर, आ. धर्मेंद्र जी, आ. विजय निकोर सर मेरी ग़ज़ल को मान देेने के लिए मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. आगे भी यूँ ही हौसला अफ़्ज़ाई करते हैं यही इल्तिज़ा है.

Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 7:56am

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:59pm

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय शिज्जू जी, दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2016 at 10:42am

आदर्णीय शिज्जु भाई , अच्छी गज़ल कही है . हार्दिक अधाइयाँ आपको ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 23, 2016 at 10:05pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई जनाब शिज्जू शकूर साहिब |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 23, 2016 at 7:24pm

मुहतरम जनाब शकूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2016 at 6:55pm

आदरणीय शिज्जू भाई जी, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

आदरणीय समर कबीर जी की उस्तादाना नज़र के कायल हैं. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2016 at 3:41pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब, सुझाव का शुक्रिया.

///इस ग़ज़ल की ये कमज़ोरी है कि इसके पांच अशआर में 'न'की तकरार है/// ये आपने बताया तभी मेरा ध्यान गया पहले मेरा ध्यान नहीं गया था. आगे से ध्यान रखूंगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
39 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
45 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"वाह वाह वाह... क्या ही खूब शृंगार का रसास्वाद कराया है। बहुत बढ़िया दोहे हुए है। आखिरी दोहे ने तो…"
51 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी, बहुत शानदार गीत हुआ है। तल्ला और कल्ला ने मुग्ध कर दिया। जो पेड़ों को काटे…"
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आपकी ज़िंदगी ओबीओ  मेरी भी आशिकी ओबीओ  इस समर में फले कुछ समर ऐ समर ये खुशी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई। आख़री दोहे में  गोल गोल ये रोटियां,…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, मयखाने से बढ़िया दोहे लेकर आए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा छंद की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। इस दोहे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"वक्त / समय बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।। आदरणीय सुशील सरना…"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service