आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया सीमा जी, सुन्दर लघुकथा के लिये बहुत बधाई. एक उम्र के बाद जा कर शायद पुरुष के प्यार का तरीका यही हो जाता है. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
कहानी के अंत में यदि थोड़ा सा संपादन कर दिया जाए तो कहानी और बेहतर हो जाएगी आदरणीया सीमा जी। इस बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है।
आद० सीमा सिंह जी,, पत्नी को धैर्य और समझदारी का फ़ल तो मिलना ही था बधाई आपको इस रचना के लिए
संग-संग --
"सुनो! तुम अपनी नौकरी छोड़ दो।" पति नें रसोई में आते ही कहा।
"क्यों?" पत्नी इस अत्प्रत्याशित आग्रह से हड़बड़ा गयी।
"सब मेरी खिल्ली उड़ाते हैं।" ठुनकते हुए पति अचानक सब्ज़ी कतरने लग गया।
"तुम्हे दकियानूसी लोगों की बातों को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। " समझाते हुए पत्नी ने फौरन पति के हाथों से चाक़ू छुड़ाया और उसके हाथों में चाय का कप थमा दिया।
"नहीं ! बहुत हो गया, तुम यह जॉब छोड़ रही हो।" कहते-कहते पति ने दो घूँट में चाय खत्म की फ़िर कप धोने लग गया।
"तुम्हे हुआ क्या है आज?" पत्नी हैरानगी से लगभग चीख ही पड़ी।
"तुम्हारा हाथ बंटा रहा हूँ।" पति को पत्नी की हैरानगी से कोई फर्क न पड़ा ।
"तुम्हे तो अपनी इज्जत का ख्याल है नही ! लोग क्या कहेंगे? कि बीवी अपनें मियाँ से चौका-चूल्हा करवाती है।" पत्नी अब झुँझला उठी थी।
"लोग मुझसे भी तो यह कह सकते हैं।" पति ने पलटवार किया।
"ओहो! समझने की कोशिश करो, दो जन कमाते है तब कहीं..! " पत्नी अब रुआँसी हो आई थी।
पति कोई उत्तर देता इससे पहले फ़ोन घनघना उठा। पत्नी ने फौरन फ़ोन उठा लिया।
"किसका फ़ोन था?" पति ने फ़ोन कटते ही पत्नी पर सवाल दागा।
"गैराज से फ़ोन था,एक पहिया जाम था। उन्होंने ठीक कर दिया है। जब तक दोनों पहिये संग-संग न चलें तो भला गाड़ी?" बोलते-बोलते एकाएक पत्नी सकपका गयी, पति मुस्कुराते हुए उसे घूर रहा था। पत्नी ने नजरें झुका लीं और फ़टाफ़ट रसोई में जा घुसी। पति भी उसके पीछे-पीछे रसोई में आ पहुंचा।
कुछ देर तक तो सन्नाटा पसरा रहा फ़िर अचानक रसोई ; बर्तनों की खट-पट और दोनों के समवेत ठहाकों से गुलजार हो गई।
मौलिक व अप्रकाशित
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