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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 73 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-74

विषय - "कतार"

आयोजन की अवधि- 09 दिसम्बर 2016, दिन शुक्रवार से 10 दिसम्बर 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र दो ही प्रविष्टियाँ दे सकेंगे. 
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 09 दिसम्बर 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में गहराई से आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया, महरबानी ---

प्रदत्त विषय पर बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी। सादर।

मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब , ग़ज़ल में गहराई से आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया, महरबानी ---

जनाब तस्दीक अहमद खान साहब , प्रदत्त विषय विषयपर उम्दा ग़ज़ल रचना हुई है |तहे दिल से मुबारकवाद देता हूँ  ,कुबूल करें |

मुहतरम कालीपद प्रसाद साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया --

पिछड़े हुओं को मिलती है अब सिर्फ़ नौकरी
क़ाबिल तो मुद्दतों से रहा है क़तार में ।
वाह ... वाह .... सभी शे'र काबिले तारीफ़ हैं . दाद कुबूल फरमाएं जनाब तस्दीक साहेब .

कैसा ये है मेरा जीवन,
कण्टकाकीर्ण, हर क्षण विलक्षण। कैसा ये. . .

दुनियाॅ में आते ही चिल्लाया चीखा,
कष्टों की थाली में भोजन भी फीका,
सुबह शाम होठों पर फिर वही सूखन। कैसा ये. . .

समय अन्तरालों ने काया बढ़ाई,
इसी सूखी रोटी ने आभा चढ़ाई,
मनोहर सुसन्ध्या , पर सबेरे का चिन्तन। कैसा ये. . .

आशा की धुन में भ्रमण ने थकाया,
तिरस्कार अनचाह ने मन झुकाया,
बलहीन काया में रोगों की पीड़न। कैसा ये. . .

परिश्रम का संचित धन बैंक ने छुड़ाया,
वापसी के लिये लम्बी कतार में लगाया,
दिन पर दिन बढ़ते, न घटती है लाइन । कैसा ये. .

.

जीवित अवस्था में दुर्भाग्य आया,
मृतवत रहा फिर भी सब ने नचाया,
निष्पृहता में भी मिला दोषारोपण। कैसा ये. . .

स्नेही कृपाचाह में आस टूटी,
व्यथित मन से बाधाओं में साॅंस टूटी,
उदर रिक्त होते हुए भी अजीरण। कैसा ये. . .


मौलिक व अप्रकाशित

अति सुन्दर काव्याभिव्यक्ति आ० डॉ टी आर सुकुल जी, हादिक बधाई निवेदित है हालाकि यह कविता प्रदत्त विषय "कतार" की अपेक्षा "जीवन" के कहीं निकट प्रतीत होती हैI 

रचना की सराहना के लिए विनम्र आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी। आपका कहना अनुचित नहीं है। "कतार" के अनेक प्रकार हैं और "जीवन "उन सभी कतारों का 'अमीबा से मानव तक' के विकास में क्रमागत योग ही तो है। आज हम सभी किसी न किसी कतार में लगे अपने क्रम आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं चाहे हमें उसकी जानकारी हो या नहीं। ससम्मान। 

आदरणीय टी आर शुकुल जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

विनम्र आभार आदरणीय सत्यनारायण जी। 

आदरणीय सुकुल जी

हर मानव जन्म से मृत्यु तक का जीवन किसी न किसी रूप में कतार और इंतजार में ही व्यतीत करता है।

हार्दिक बधाई, इस प्रस्तुति पर

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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