आदरणीय साथिओ,
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21 में आप सब का हार्दिक है.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-21 के साथ समाप्त हो रहे वर्ष - २०१६ की शानदार बिदाई और आने वाले नववर्ष २०१७ की अनंत शुभकामनाए,
अँधेरी राहों का मुसाफ़िर
//दोयम दर्जा//
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'रागिनी ज़िद छोड़ दो।' 'कोई और रास्ता अपना लो।'
'खुले आसमान के नीचे रहना ज्यादा आसान है, किन्तु हम गरीबों के लिए महलों का सुख छलावा है, जीवन से खिलवाड़ है।"
' घुटनभरे गलिहारो में, स्वर्ण की चमक के बीच अपना आभामंडल का सर्वस्व खो जाने जैसा है।'
'भारती तुम्हारी नाकामी मुझ पर मत थोपो , मैं अपना अच्छा-बुरा खुद जानती हूँ।'
' मेरी कामयाबी से इतनी ईर्ष्या?'
"तुम दोस्त हो या मेरी दुश्मन।"
भारती की लाख समझाइश भी रागिनी के भ्रमर जाल को नहीँ तोड़ सकी। और रागिनी माया लोक के दलदल में अंजान सी धसती चली जा रही थी।
लक्ज़री फेसिलिटी की चकाचोंध में रागिनी ने भारती को काफी पीछे छोड़ दिया था।
आज शहर में नोट बंदी के साथ वृहद पैमाने पर सर्चिंग चल रही थी। रागिनी का घर परिवार भी निशाने पर था।
आज रागिनी मान , माया, मर्यादा, महल लेश हो गई। आज ही रागिनी को ज्ञात हुआ कि घर में उसका दर्जा एक्सवाइफ़ का है। दोन नंबरी दर्जे के सारे काम उसी के नाम से जारी थे।
रागिनी के कानों में भारती की बाते अक्षरसह गूँज रही थी।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय विजय जी, आयोजन का फीता काटने के लिए बधाई. प्रस्तुति प्रदत्त विषय को सार्थक करती हुई है किन्तु साथ ही कालखंड दोष की सम्भावना लग रही है किन्तु इस पर गुनीजनों का मार्गदर्शन निवेदित है. साथ ही प्रस्तुति में वर्तनी और व्याकरण सम्बन्धी बिदुओं पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर
तेज़ भागती जिन्दगी की कशमकश दर्शाती लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय विजय जोशी जी. बधाई आप को इस वर्ष के अंतिम आयोजन में अपनी पहली लघुकथा प्रस्तुत करने के लिए,
आयोजन की शुरुवात करने के लिए बधाई, थोड़ी और मेहनत की जरुरत है| शुभकामनाएँ
लघुकथा प्रदत्त विषय को परिभाषित कर रही है जिस हेतु आपको बधाई देता हूँ भाई विजय जोशी जीI भाई सर्वश्री मिथिलेश वामनकर जी, सुनील वर्मा जी, विनय कुमार सिंह जी एवं सतविंदर कुमार जी द्वारा उठाये गए बिन्दुओं पर मेरी भी सहमति हैI रचना अभी शिल्प, कथ्य और भाषाई दृष्टिकोण से बहुत मेहनत मांग रही हैI क्योंकि कमजोर सम्प्रेषण से कथ्य उभर कर नहीं आ रहाI
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