आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
सुंदर प्रेरक रचना विषय पर, थोड़ी और स्पष्ट होती तो बेहतर होती| बधाई आपको
आदरनीय समर कबीर जी आप का बहुतबहुत आभार इस प्रतिक्रिया के लिए. आप का कहना सही है. प्रस्तुत लघुकथा यही बात कहने के लिए लिखी थी. आप ने यह बात बता कर लघुकथा के मर्म को स्पष्ट कर दिया.
आदरणीय सतविंदर कुमार जी शुक्रिया आप का मंतव्य स्पष्ट करने के लिए. कभीकभी हम प्रवाह में इस तरह बह जाते हैं कि उस की अस्पष्टता का पता ही नहीं चलता है. खैर ! इसे सरल करने की कोशिश करूँगा.
आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी, रचना ने प्रदत्त विषय को सार्थक अवश्य किया है जिस हेतु आप बधाई के पात्र हैंI लेकिन रचना में अस्पष्टता वाली स्थिति प्रतीत हो रही है, मुझे पूरी बात समझने के लिए इसे कई बार पढना पड़ाI जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ कि यह लघुकथा में राजन और उसकी अंतरात्मा के मध्य सँवाद चल रहा है (यदि मुझे समझने में गति हुई हो, तो अवश्य बताएँ) जहाँ वह उन घटनाओं का ज़िक्र कर रहा है जहाँ स्वयं उसकी माँ ही उसे जाने या अनजाने अपराध के रास्ते पर धकेल देती हैI बाद में वह बन्दा किसी महिला की चेन खींचता है जिससे उस महिला की मौत हो जाती हैI और उस बंदे को जेल में डाल दिया जाता हैI इसी संवाद के दौरान उसकी माँ उसे मिलने आती है, मगर वह उसे मिले बगैर ही कालकोठरी की तरफ बढ़ जाता हैI
अब इस कथा के कुछ कमज़ोर पहलू:
1. //“मुझे क्या पता. मै छोटा था. बस यही सीख गया. मगर, मैं ने उस की हत्या नहीं की.”//
इस संवाद को गौर से देखें, इसके क्रम से यह लगता है कि राजन ने अपनी माँ की हत्या की हो.
2. //“ मगर एक गलती के लिए इतने मनगढ़ंत आरोप और इतनी बड़ी सजा ? यह तो सरासर गलत व नाइंसाफी है.//
तो क्या राजन ने चेन नहीं खींची थी? मनघडंत आरोप वाली बात का औचित्य समझ नहीं आयाI
3. //जेल के मच्छर ने एक हाथ पर काट खाया. दूसरा हाथ तब तक उस मच्छर को मौत की सजा दे चूका था.//
इस पंक्ति का इस लघुकथा में क्या औचित्य या महत्व है, समझ नहीं आयाI
4. // “ तुम्हे आज तक लाड़प्यार ही मिला है सजा कहाँ मिली है. इसलिए तुम कैसे कह सकते हो कि क्या गलत व क्या सही क्या है ?”//
क्या केवल लाड़-प्यार प्राप्त करने वाले इंसान इतने अनजान होते हैं? क्या सजायाफ्ता ही सही-गलत की पहचान करने में सक्षम होते हैं? यह बात कुछ हज़म नहीं हो रही हैI
5. // “ यह माँ नहीं हो सकती है ?//
यह बात राजन ने कही है या कि पूछी है? "?" से पूरी पंक्ति का अर्थ ही बदल गया हैI
आदरनीय योगराज प्रभाकर भाई साहब, आप का कहना बिलकुल दुरुस्त है.आप की विस्तृत समीक्षा पढ़ कर लघुकथा के कमजोर और बेकार पक्षों की जानकारी मिली. इस से पता चला कि यह लघुकथा तो नहीं हो सकती है. जब तक इस के उपरोक्त पक्षों को स्पष्ट न किया जाए, शुक्रिया आप का लघुकथा के कमजोर पक्षों को बता कर विस्तृत समीक्षा करने के लिए.
इस कमजोर कथा के बहाने आप की विस्तृत समीक्षा किसी गुरु के आशीर्वाद से कम नहीं है. आभार एक बार फिर आप को.
आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई साहब व अन्य सम्मानीय साथियों, लघुकथा को संशोधित किया है. बताइएगा - प्रयास कैसा रहा ? लघुकथा में जान आई या नहीं ?
लघुकथा- माँ
मन और आत्मा में अंतर्द्वंद्व चल रहा था.
मन ने हल्का होने के लिए आत्मा से कहा, “ मुझे पेन मिला था. माँ से कहा. वह कुछ नहीं बोली. मै ने पेन अपने पास रख लिया. मगर जब रास्ते में माँ के साथ जा रहा था, तब मुझे कीमती आभूषण व रूपए से भरा पर्स मिला था. उसे देख कर माँ बड़ी खुश हुई, ‘ ऊपर वाला जब भी देता है छपरफाड़ कर देता है.’ माँ ने यह कहते हुए उस अमानत को अपने पास रखा लिया था.”
“ यह तो गलत बात थी. क्या, भगवान इस तरह छप्परफाड़ कर धन देता है ?”
“ मुझे क्या पता. मै उस वक्त छोटासा बच्चा था. बस चीज़े उठाना सीख गया. और बड़ा हुआ तो छोटेछोटे अपराध करने लगा. मगर, मैं ने उस लड़की की हत्या नहीं की हैं.”
“ गले से चैन किस ने खीची थी ? उसी चैन से उस लड़की का गला कटा था और वह मर गई, ” आत्मा ने जवाब दिया.
“ मगर एक छोटीसी गलती के लिए हत्या, छेडछाड जैसे आरोप और जेल की सजा ? यह तो सरासर गलत व नाइंसाफी है. यदि मै पैसेवाला होता तो जेल से छुट गया होता ?” मन ने कहा तो आत्मा ने जवाब दिया, “ तुम ने गलती तो की है. सजा तो मिलेगी ही. चाहे शारीरिक हो या मानसिक ?” तभी अँधेरी कालकोठारी में गन्दगी में पनपने वाले मच्छर ने उस के एक हाथ पर काट खाया. दूसरा हाथ तब तक उस मच्छर को मौत की सजा दे चूका था, “ गलती की सजा देना तो कुदरत का भी कानून है.”
आत्मा ने कहा तो मन पश्चाताप की आग में जलते हुए बोला, “ सजा केवल मुझे ही मिलेगी ?”
“ नहीं. सभी को."
तभी अंधेरे को चीरती हुई प्रहरी की आवाज़ आई. “राजन ! तुम्हारी माँ मिलने आई है.” जिसे सुन कर मन चीत्कार उठा, “ गलत आदत सिखाने वाली मेरी माँ नहीं हो सकती है ?” और वह कालकोठरी की अँधेरी राह को चुपचाप निहारने लगा.
तभी आत्मा ने कहा, “ माँ ! माँ होती है. अन्यथा वो यहाँ नहीं आती,” और वह खामोश हो गई.
----------------------
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |