आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जोशी जी। गोष्ठी का शुभारंभ करने के लिये और एक अच्छी लघुकथा से रूबरू कराने के लिये।
रचना का विषय चुनाव काफी अच्छा है, जिस हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय विजय जोशी जी, रचना को गुरुजनों और वरिष्ठजनों की राय के अनुसार बदलाव करेंगे तो निसंदेह उत्कृष्ट बन जायेगी|
सरहद - लघुकथा –
क़ुफ़वाड़ा (जम्मू कश्मीर) से तीस किलो मीटर आगे, दिसंबर की हाड़ कपाने वाली बर्फ़ीली रात, लगभग दो बजे होंगे। खंदक में से कंबल छोड़ कर, ठिठुरते हुए हवलदार असलम ने लघु शंका के लिये बाहर निकलने की कोशिश की। एक गोली दन्न से उसका बायाँ कंधा छीलते हुए निकल गयी।
असलम अपना संतुलन नहीं संभाल पाया।धम्म से गिर गया। साथी हवलदार रूप सिंह ने सहारा देकर असलम को खंदक में अंदर खींच लिया। असलम के कंधे से खून बह रहा था। खंदक में कोई प्रथम उपचार का सामान नहीं था।
रूप सिंह ने रम की बोतल से थोड़ी रम ज़ख्म पर उड़ेल दी। असलम जलन से तिलमिला उठा।
"असलम भाई, आप अभी अपनी पिछली चौकी पर चले जाइये। वहाँ सब साधन हैं, आपका ठीक सेउपचार हो जायेगा"।
"नहीं ज़नाब, यह संभव नहीं होगा। हमारी क़ौम पहले ही बदनाम है। मैं पीछे नहीं हटूंगा"।
"असलम भाई, आपको पीछे केवल उपचार के लिये जाना है। रात भर खून बहेगा तो आपकी जान को खतरा है"।
"मुझे कुछ नहीं होगा ज़नाब, आप बेफ़िक्र रहिये"।
"असलम भाई, आप ज़ख्म की गंभीरता को समझिये। आप को जाना ही पड़ेगा"।
रूप सिंह के बार बार जोर देने पर असलम झुंझला गया,"ठीक है ज़नाब, आपका आदेश तो मानना ही होगा। मगर जाने से पहले एक जरूरी काम करना है"।
इतना कह कर असलम फ़ुर्ती से अपनी एल एम जी लेकर निकला और अंधेरे में गायब हो गया। रूप सिंह सांस रोके असलम की गति विधि की टोह लेने का प्रयास कर रहा था।
रूप सिंह को लगा, जैसे असलम अपनी चौकी की ओर ना जाकर दुशमन की चौकी की तरफ़ जा रहा था| मगर घुप्प अंधकार में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था।
अचानक ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज़ होने लगी।
तड़ तड़ तड़.............. फिर उन गोलियों की आवाज़ से भी तेज़, हवलदार असलम की आवाज़ गूंजी,
"भारत माता की जय"।
मौलिक व अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय विजय जोशी जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. अँधेरी राहों के ऐसे मुसाफिर ही रौशनी का पैगाम लाते है. देशभक्ति को अपने अपने ढंग से परिभाषित करने की होड़ के दौर में एक बढ़िया प्रस्तुति हुई है. आपको इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी।आप सरीखे गुणी लोगों की प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया मन को एक अजीब सा आनंद देती हैं।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघुकथा विधा मेरे लिए अपेक्षकृत नई विधा है. अभी ठीक से इसका अभ्यासी भी नहीं बन पाया हूँ लेकिन एक पाठक के रूप में मंच और मंच से इतर प्रस्तुत लघुकथाएँ पढ़ता रहा हूँ. अपने अल्प ज्ञान से प्रतिक्रिया देने का दुस्साहस कर लेता हूँ. आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. हार्दिक धन्यवाद आपका.
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, विधा आपके लिए बेशक नई हो परन्तु आपकी लघुकथा विधा पर पकड़ बहुत मजबूत है। आपकी 'पहचान' विषय पर रचित लघुकथा मुझे आज भी याद है , मैं उसका शुमार अपने द्वारा पढ़ी श्रेष्ठ लघुकथाओं में करता हूं। सादर
आदरनीय तेज़ वीर सिंह जी शानदार व वजनदार लघुकथा प्रस्तुत करने के लिए बधाई .
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी। आप जैसे शुभ चिंतक ही मेरे प्रेरणा श्रोत हैं।
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