आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय मनन जी वर्तमान परिस्थितियों को कथानक में पिरोकर बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई. सादर
आदरणीय मनन जी, प्रस्तुत लघुकथा सार्थकता से दिए गए विषय को परिभाषित करती है। साहित्य से समाज के सबंधों के पक्ष से साहित्यकार की भूमिका अक्सर तीन रूपों में देखी या मानी जाती है- पलायन, सहमति अथवा विरोध। यानि किसी बुराई को देखकर अनदेखा कर देना, उसे स्वीकार कर लेना या उसका डट कर विरोध करनाा लघुकथा के अंत में कालू का तीसरा रास्ता अपनाकर बगावती तेवर दिखाना लघुकथा को एक नई ऊंचार्इ् प्रदान कर रहा है। किसी भी साहित्यक रचना पर सामाजिक स्थिती और वातावरण का प्रभाव होना स्वभाविक है क्योंकि साहित्य में ततकालीन समाज सदा ही प्रतिबिंबित होता है। परन्तु वक्ती भावनाओं में बहकर लिखी गई रचनाओं की कशिश बहुत थोड़े समय की होती है और समय बीतते बीतते ऐसी रचनाएं भूला दी जाती हैं। सो प्रधान संपादक की बात से सहमत होते हुए नोटबंदी विषय को कथानक में शामिल करने से मैं उसका अनुमोदन करता हूं। सादर
//-थाने। हमनी त घर के अँधियारा भगावे खातिर अँधेरे रस्ते चले।अँधेरा त झोपड़ी तक आ गया।// प्रदत्त विषय को परिभाषित करने के लिए आपने बहुत प्रभावशाली विषय का चयन किया है और कुशलता से उसका निर्वहन भी हुआ है ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मनन जी
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