आदरणीय साथिओ,
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प्रिय सीमा मिश्रा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका .
आदरणीय ओमप्रकाश जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका
आ० राजेश कुमारी जी, बढ़िया लघुकथा हुई हैI विषय की नवीनता ने आइसिंग ऑन दि केक का काम किया है, जिस हेतु यह लघुकथा फ्लाइंग कलर्स ले गईI लेकिन मुझे दो जगहों पर एतराज़ है, एतराज़ न समझें बल्कि सुझाव हैं:
1. आश्चर्य का तत्व (एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़) लघुकथा में जान डाल दिया करता है, किन्तु आपने कथा के मध्य ही में विक्रांत का राज़ खोल दियाI यह रज अंत तक बरकरार रहता तो आपकी कृति एक कलाकृति हो गई होतीI
2. डील केंसल वाली बात ने किए कराये पर पानी फेर दिया, दो ढहते किलों आईएनएस विक्रांत और केप्टन विक्रांत का दर्द उभरने की बजाय दब कर रह गयाI यदि यह लघुकथा मैं कहता तो आईएनएस विक्रांत की बॉडी टूटती और केप्टन विक्रांत का दिलI
आद० योगराज जी ,आपको लघु कथा अच्छी लगी इसका कथानक ने प्रभावित किया ये इस लघु कथा की सार्थकता मानती हूँ .आपके सुझाव सर आँखों पर . आदरणीय मैं कहानी का अंत सुखान्तता की तरफ़ ले गई उसके लिए मन में तीन कारण थे .१,एक तो ढहते किले के दर्द को महसूस भी कराना चाहती थी तथा उसका निवारण भी चाहती थी न० २ ..आई एन एस को टूटता हुआ नहीं दिखा सकती थी क्योंकि नौ सेना का जहाज जो कई युद्ध में शरीक रहा जिसकी छाती से युद्ध विमान उड़ान भरते थे उसको नवजीवन मिल चुका है इस साल या अगले साल पुनः पानी में अवतरित होगा .जब उसको बेचा जा रहा था तब नेवी के एडमिरल ने एन वक़्त पर बिक्री रुकवाई थी .बीच में उसको अजायब घर बनवाने के प्रस्ताव भी आये किन्तु नौसेना उसको नवजीवन देकर जल में उतारना चाहती थी |
हाँ विक्रांत शिप का राज थोडा और देर में खुल सकता था उसका प्रयास करूंगी .आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय
आई एन विक्रांत में मैंने दो बार सेलिंग भी की हुई है बी उसको बेचने की बात सुनी मुहे भी बहुत सदमा लगा था बस ये कथानक तब से कहीं न कहीं दिमाग में था .
क्या आईएनएस विक्रांत अभी तक मौजूद है? इसलिए जानना चाहता हूँ क्योंकि बजाज की एक नई बाइक कुछ समय पहले बाज़ार में आई थी जसके बारे में कहा जाता है कि उसे विक्रांत के फौलाद से बनाया गया है.
योगराज जी ,मैंने तो यही सुना है की उसका नवीनी करण हो रहा है उसकी बिक्री पर रोक लग गई थी अब वास्तविकता क्या है ये तो छानबीन करनी पड़ेगी |
संभवतः वह डील हो गई थी. सादर
आदरणीया राजेश दीदी, एक नए विषय के साथ बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है जो अपने शीर्षक को भी सार्थक करती है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आद० मिथिलेश भैया ,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत बहुत आभार
वाह वाह ,एक बूढ़े हो चले जहाज का दर्द , और ये पंक्ति// मछलियाँ भी नीचे से गुदगुदी करने में लगी हुई थीं .... // बहुत खूब ...एक निराला ही विषय लिया आपने ढेरों बधाई आदरणीया राजेश जी
प्रिय प्रतिभा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत बहुत आभार आपका मेरा लिखना सार्थक हुआ .
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