आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी।लघुकथा की सुंदर विवेचना हेतु पुनः आभार।
अच्छा सन्देश दे रही है आपकी यह लघुकथा आ० तेजवीर सिंह जी, प्रदत्त विषय से न्याय करती हुई इस लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।लघुकथा पर आपकी बधाई मेरे लिये एक आशीर्वाद है।सादर।
हाँ, बच्चू कह रहा था कि बहू के पिता को लक़वा मार गया है। उसका छोटा भाई अभी पढ़ रहा है।इसलिये बहू की पगार उसके मायके भेजी जाया करेगी"।// बहुत अच्छा सन्देश देती कथा ...हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर जी
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, इस शानदार, संदेशप्रद, सफल लघुकथा के लिए दिल से बधाई लीजिये. ऐसी ही लघुकथाएँ आज की मांग हैं. आपने एक कलमकार का कर्तव्य बखूबी निभाया है. इसे आपकी प्रतिनिधि लघुकथाओं में से एक मानता हूँ. सादर
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।आपका उत्साह वर्धन मेरे लिये भविष्य में एक ऊर्ज़ा श्रोत का कार्य करेगा जिससे कि मैं आनेवाले समय में और अच्छा लेखन करने की चेष्टा करूंगा।पुनः हार्दिक आभार।
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
बहुत बढ़िया सन्देश देती इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
लघुकथा – परम्परा
चारों लड़कियां बहादूर व हिम्मती थी. यह बात उन के पिता की मृत्यु के समय सभी जान चुके थे. इन्हों ने परंपरा के विपरीत जा कर अर्थी को कंधा और चिता को मुखग्नि दी थी. यहां तक सब ठीक था. मगर, जब इन्हों ने अपनी शादी हो जाने के बाद और ससुराल जाने से ठीक पहले जो करना चाह रही थी, वह परिवार के सभी पुरुषों को नागवार गुजर रहा था.
''यह असंभव है. हमारे यहां ऐसा नही होता है,'' उस के बड़े पापा ने जम कर विरोध किया.
'' तुम्हारी मां और तुम जो चाहे जो करो, हमें कोई ऐतराज नहीं है. मगर, यह नया रिवाज यहाँ नहीं चल सकता है,'' काका ने मकान और जायदाद हाथ से वापस जाता देख कर अपना आदेश सुना दिया.
'' क्यों नहीं चला सकता है. जब हमारा समाज में ‘कन्यादान’ हो सकता है तो ‘पुत्रदान’ क्यों नहीं हो सकता हैं ?''
'' यह हमारी परंपरा के खिलाफ है. हम ऐसा नहीं होने देंगे.'' बड़े पापा ने काका के सुर में सुर मिलाए ताकि विधवा के मरने के बाद सारी जायदाद उन की हो सके.
'' यह हमारी मां के जीवन सवाल है. वह और हम जैसा चाहे वैसा कर सकती हैं .'' सब से बड़ी बेटी रीना ने प्रतिरोध किया तो बड़े पापा दबंगाई से बोले, '' कभी अपनी मां से पूछा है. वह ऐसा करना चाहती है या नहीं ?'' जैसे ही बड़े पापा ने कहा था कि मां भी वहां आ गर्इ्, '' तुम्हारे बड़े पापा ठीक कह रहे हैं. मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगी.''
'' हां मां ! हमें पता है. आप ऐसा क्यों कह रही हो. ताकि यह सारी संपत्ति वापस इन्हीं लोगों को मिल जाए. मगर, हम आप की होने वाली दुर्दशा नहीं देख सकती है. इसलिए आप से कह रही है कि आप यह शादी कर ले.''
'' हां मां ! अन्नु ठीक कह रही है,'' छोटी बेटी रीना ने कहा, '' मां ! आप जवानी में नानाजी के डर से अपने प्रेम का इजहार नहीं कर सकी. मगर, अब जब पापा ही नहीं रहे हैं तब आप अपने प्रेम को इजहार करने से क्यों डर रही है ?''
'' समाज क्या कहेगा ? यह तो सोचो बेटी ?''मां बड़ी मुश्किल से बोल पाई.
'' मां ! हमें उस की परवाह करना चाहिए जो हमारी परवाह करता है.'' बीच वाली बेटी सीमा ने कहा, '' फिर हमारे नए पापा, खुद शादी कर की इस नई परंपरा ‘पुत्रदान’ को निभा कर हमारे घर आने को तैयार है.''
यह सुन कर मां धम्म से जमीन पर बैठ गर्इ् और धीरे से बोली,'' बेटी ! मुझ में धारा के विपरीत बहने की ताकत न पहले थी और न अब है.''
यह सुन कर गीता ने कहा, “ माँ ! किसी को तो परम्परा बदलने के लिए हिम्मत व जोश दिखाना ही पड़ेगा ना .” और माँ उस की यह बात सुन कर विचारमग्न हो गई कि क्या निर्णय लूं ?
-------------------
(मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित )
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |