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वाह!!! देवेन्द्र साहब वाह!!!
हालांकि हर शेर उम्दा है और कोट किये जाने की मांग करता है पर पहले मतले में प्रश्नवाचक मिसरों ने तो शेर को लाजवाब कर दिया है| और तीनो मतले इस गज़ल की शान हैं.....बहुत खूब| बहुत बहुत बधाई|
उन्होंने इक न इक मुद्दा सदा पैदा कराया है
कभी हड़ताल और धरना, कभी बलवा कराया है
ख़याल उसको हमेशा ही रहा है अपने कुनबे का
इसी खातिर तो अपनी जान का बीमा कराया है
अगर समझे नहीं तो अब समझ लें कायदे आज़म
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है
हमेशा ही चमकता रहता उन माँ बाप का चेहरा
वो जिनका लाडलों ने सर सदा ऊँचा कराया है
तुम्हारी चंद बातें गर लगा करती हैं मिसरी सी
तो कुछ बातों ने मुंह का ज़ायका फीका कराया है
सितम की इन्तिहाँ है किस तरह उनको ये बतलायें
उन्होंने इक झलक देकर सदा पर्दा कराया है
ये बच्चा घर से जब भागा था तो बिलकुल सलामत था
इसे तो चंद सिक्कों के लिए लंगड़ा कराया है
वाह वाह राणा जी, बड़ी देर कर दी हुजूर आते आते, मुशायरे में केवल अब एक घंटे ही शेष है | बहरहाल बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल पेश किया है आपने , एक एक शे'र बड़ी होशियारी और काबिलियत से तराशा गया है |
ख़याल उसको हमेशा ही रहा है अपने कुनबे का
इसी खातिर तो अपनी जान का बीमा कराया है,
वाह ! क्या बात है , बहुत खूब भाई जी |
हमेशा ही चमकता रहता उन माँ बाप का चेहरा
वो जिनका लाडलों ने सर सदा ऊँचा कराया है
बिलकुल यथार्थ की बात, बच्चे ही माँ बाप का सर झुकाने और उठाने का काम करते है |
सितम की इन्तिहाँ है किस तरह उनको ये बतलायें
उन्होंने इक झलक देकर सदा पर्दा कराया है....
वाह वाह , बहुत ही याराना शे'र , जबरदस्त |
ये बच्चा घर से जब भागा था तो बिलकुल सलामत था
इसे तो चंद सिक्कों के लिए लंगड़ा कराया है
वाह राणा जी वाह , पूरी ग़ज़ल की जान , बहुत ही खुबसूरत और बुलंद ख्याल से भरा शे'र |
बहुत बहुत दाद कुबूल करे राणा भाई |
mujhe pasand aaya aapka sher bahut achcha hai
ख़याल उसको हमेशा ही रहा है अपने कुनबे का
इसी खातिर तो अपनी जान का बीमा कराया है
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