आदरणीय साथिओ,
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जनाब महेन्द्र कुमार साहिब , लघु कथा में आपकी शिरकत और हौसला
अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -----
आदरणीय जनाब , उत्तम लघुकथाऐं हुई हैं । जालिम जैसे मामलों में अधिकांशतः जनता ही स्वयं निर्णय करती है । बधाई हो आपको ।
मुहतर्मा अर्पणा साहिबा , लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ----
आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब, दो बेहतरीन रचनाओं के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें| दोनों के कथानक बहुत अच्छे लगे| दूसरी रचना के लिए यह निवेदन करना चाहूँगा कि यदि अजान की जगह "एक तरफ से अजान, दूसरी तरफ से गुरूद्वारे का शबद कीर्तन और तीसरी तरफ से मंदिर की घंटियाँ..." (जैसा आदरणीय रवि प्रभाकर जी सर ने भी भाई सुनील जी की रचना में सुझाया है) ऐसा कुछ कर दें तो मेरे अनुसार धार्मिक सद्भावना का रंग, जिससे आपकी रचना रंगी भी है, वो और अधिक गहरायेगा| सादर विचारार्थ
मुहतरम जनाब चंद्रेश कुमार साहिब , लघुकथा में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ----आपकी भावनाओं और आपकी सोच की मैं क़द्र
करता हूँ ,आपने जिसके बारे में ज़िक्र किया है , जल्द ही वैसी ही क़ौमी एकता पर
लघुकथा पेश करने की कोशिश करूँगा ----सादर
कुर्ते की जेब
.
पिछले तीन सालों में ऐसी अनहोनी तो कभी नहीं हुई थी । राम दुलारे जी ने आँखें मल कर फिर देखा, ए सी सचमुच ही बंद था । बाथ रूम की तरफ बढे तो अंधेरे में मेज से टकरा गए। भद्दी गाली, जो किसी तरह रोक रखी थी , बाथ रूम में जाते ही निकल गई क्योंकि नल में पानी ही नहीं था। पी ए को हड़काने के लिए फोन उठाया तो फोन डेड मिला । पर्दा हटा कर झांका तो लैंप -पोस्ट के नीचे खड़ा रहने वाला वर्दीधारी संतरी भी गायब दिखा।
"रामू , ओ रामू के बच्चे “ वह दहाड़े तो हांफता-कांपता नौकर भाग कर आया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया।
नेता जी फिर दहाड़े थे “ मैं पूछता हूं यह सब क्या हो रहा है ? सभी चीजें रातों-रात गायब कैसे हो गई ?“
रामू हकलाने लगा ” जा जा जान की अमान पाऊं तो बताऊं मालिक । “
राम दुलारे जी का धैर्य बहुत पहले ही जवाब दे चुका था, आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए कहा था ” जल्दी बको। “
रामू फिर हकलाने लगा “ र र रात आप तो नशे में सोए रह गए और..."
" और क्या ?"
" और विरोधी पार्टी वाले आपका लंबी जेब वाला कुर्ता चुरा ले गए “
“ हरामखोर “ राम दुलारे जी फनफनाए “ मेरे कुर्ते और बिजली-पानी का क्या संबंध ?“
” भूल गए हुज़ूर ?“ रामू ने भोलेपन से आंखें मिचमिचाई थीं ” ये सारे विभाग आपके कुर्ते की जेब में ही तो होते थे। "
(पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित)
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