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कौन भरेगा पेट - एक नव गीत

कौन भरेगा पेट  

 

छोड़ा गाँव आज बुधिया ने,

बिस्तर लिया लपेट

उपजायेगा कौन अन्न अब,

कौन भरेगा पेट  

 

गायब हैं घर में खिड़की अब,

दरवाजों की चलती है

आज कमी आँगन की हमको,

बहुत यहाँ पर खलती है

 

लैपटॉप पर खोल रहे हैं,

अब विंडो बिल गेट

 

खेतों में सडकें घुस आयीं,

जंगल में महलों का शासन

पानी सूख गया झरनों का,

पशु पक्षी कर गए पलायन

 

नालों ने मिलकर कर डाला,

नदियों का आखेट

 

बैठ धरा पर हमने लिक्खी,

बस चाँद गगन की सुन्दरता

वसुधा के सीने पर निश दिन,

करते रहे सदा बर्बरता   

 

तपती रही धरा, मंगल पर,

पहुँच गया रॉकेट

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 8:59pm

आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर मुग्ध हूँ आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सादर नमन,  इसी तरह स्नेह बनाये रखें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 8:06pm

आदरनीय बसंत भाई , आधुनिकता से पैदा हुई विनाशक परिस्थिति को आपके बहुत अच्छे से बान्धा है गीत मे .. बधाइयाँ ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 5:41pm

 ह्रदय से आभार आदरणीय  श्री laxman dhami जी आपका, इसी तरह स्नेह बनाये रखें, सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 5:40pm

ह्रदय से आभार आदरणीय  Samar kabeer जी  आपका, यूँ ही स्नेह बनाये रखें, सादर 

Comment by Samar kabeer on May 8, 2017 at 3:39pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत अच्छा नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2017 at 11:58am

आ. भाई बसंत  जी सुंदर गीत हुआ हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 10:54am

जी आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी ध्यानाकर्षण हेतु ह्रदय से आभार, परिमार्जन का प्रयास करता हूँ , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 9:36am
आदरणीय बसन्त कुमार शर्मा जी,उत्तम नवगीत हुआ है।आपने अंग्रेजी के शब्दों का भी सटीक प्रयोग किया है,हारदिक बधाई।
टेसू और पलाश तो एक हीहै न?
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 9:32am

हृदय से आभार आदरणीय  Mohammed Arif जी आपका, आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से उत्साहित हूँ. मार्गदर्शन की सदैव अपेक्षा है मंच से 

Comment by Mohammed Arif on May 6, 2017 at 10:50pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, मैं आपकी रचना से प्रथम साक्षात कर रहा हूँ । आपके नव गीत ने मुझे काफी प्रभावित किया ।गीत में दर्द है, आधुनिकता की आँधी में उजड़ने का दर्द भी उजागर हुआ है । ढेरों बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे इंतज़ार करें ।

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