आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, बहुत ही सुंदर रचना. भंवर से बाहर निकलने के लिए.
आ० प्रदत्त विषय ' भँवर' था , आप मुक्ति पर चले गए , आश्चर्य है कि इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होता . सादर .
मैं आपकी बात से सहमत नही आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, किसानों की "मुक्ति" (ख़ुदकुशी) बेशक "भंवर" की ही तरफ इशारा कर रही है.
प्रदत्त विषय पर सुंदर सार्थक सामयिक लघु कथा से आगाज़ किया है आद० मोहम्मद आरिफ जी| जो जिन्दगी दूभर कर दे एसी समस्याओं के भंवर से निकल कर किसान आत्महत्या कर के मुक्ति पा रहे हैं .आज के हालात पर बहुत खूब लिखा है दिल से बधाई लीजिये |
आ. मोहम्मद आरिफ़ जी, बहुत ही सधी व कसी हुई लघुकथा से आयोजन का शुभारम्भ किया है आपने. अन्नदाता किस भंवर में फंसा है उसका ज़िक्र आपने बड़ी ही कुशलता से चक्रव्यूह के द्वारा एक पंक्ति में कर दिया है. मुक्ति शब्द के प्रयोग से आपने बहुत तीक्ष्ण प्रहार किया है. प्रदत्त विषय से पूर्णतः न्याय करती इस उम्दा लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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