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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-27 (विषय: भंवर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले  26 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-27 
विषय: "भंवर"
अवधि : 29-06-2017 से 30-00-2017 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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एक चलचित्र सा खिंच गया आँखों के सामने, बहुत बढ़िया| बहुत बहुत बधाई इस मार्मिक रचना के लिए

लघुकथा—स्तर

आज उस का बरसों पुराना सपना पूरा होने जा रहा था. उस ने कहानियां बहुत लिखी थी. वह चाहता था कि वह लघुकथा में महारत हासिल करें. इसी लिए वह इधरउधर से पैसे का इंतजाम कर के लघुकथा के पुस्तक विमोचन सह सम्मेलन में शामिल हो कर लघुकथा के गुर सीखने आया था.

कार्यक्रम बहुत भव्य था. इस की भव्यता और उच्चता की तारिफ किए बिना वह नहीं रह सका. लघुकथा के आदरणीय विशेषग्य से मिलते ही उस ने कहा, '' आप ने लघुकथा पर बहुत अच्छी, संक्षिप्त, सरल व सहज बातें बताई. इसे कोई याद रख लें तो वह सफल लघुकथा लेखक बन सकता है. आप के आने से लघुकथा का कार्यक्रम की भव्यता में चार चांद लग गए है. मेरा आप से मिलने का सपना भी पूरा हो गया.'' वह उन के चरणों में झुक गया.

आदरणीय गदगद होते हुए बोले,'' आप तो यूं तारिफ कर रहे हो. मैं तो आजीवन लघुकथा के लिए ही जीया हूं इसलिए मैं ने वही कहा जो मैं ने महसूस किया है.''

वह उन की विनम्रता देख कर चकित था, '' आप का लघुकथा के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. मैं भी इस क्षेत्र में नाम कमाना चाहता हूं. आप कोई गुरूमंत्र देने की कृपा कीजिए ताकि मैं भी लघुकथा के क्षेत्र में सफल हो सकूं,'' उस ने जानना चाहा.

'' पहले आप सभी स्तरीय लघुकथाएं खूब पढ़िए. किसी एक क्षण या भाव का विश्लेषण करना सीखिए. लघुकथा का अंत ऐसा करना सीखिए कि मन को झटका लगे. इस के साथ एक बात ध्यान में ​रखिएगा, लघुकथा का अंत ऐसा करिएगा कि वह पाठकों को कुछनकुछ सोचने को विवश कर दें .'' यह कहते हुए आदरणीय गर्व से हंसे. फिर अपने हाथ में पकड़ी हुई पुस्तक उस के हाथ में थमा दी, '' इसे पढ़िएगा.''

'' आदरणीय ! यह तो आप को सादर भेट है. '' उस ने पुस्तक लौटाते हुए कहा, '' जिस का विमोचन अभीअभी आप ने ही इस समारोह में किया था.''

''अरे ! कोई बात नहीं . इसे आप ही रखिए.'' यह कहते हुए आदरणीय मुस्कराएं तो उस ने प्रश्नवाचाक दृष्टि उन के चेहरे पर गडा दी. ताकि वे जो कह रहे थे उस का अर्थ समझ सके.

वो बोले, ''यह मेरे स्तर की नहीं है. इसे आप रखिए. आप को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,'' कहते हुए आदरणीय आगे बढ़ गए.

और वह विचारों के भंवर में फंसा, लघुकथा की पुस्तक ले कर कभी उन के कहे शब्दों के वजन को मस्तिष्क में और कभी पुस्तक का वजन को हाथ से तौलने की कोशिश कर रहा था

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(मौलिक व अप्रकाशित)

बेहतरीन कटाक्षपूर्ण रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश जी।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी शुक्रिया आप का इस मतांकन के लिए.

कटु,व्यंग्य किया है आपने कथा के जरिये।सच में कितनी दुविधाजनक स्थिति है नवलेखक के सामने ।बधाई आपको आद० ओम भाई जी ।
आभार आदरणीय नीता कसार दीदी जी. आप का मत मेरे लिए अमूल्य है.
आदरणीय ओमप्रकाश जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन कटाक्षपूर्ण लघुकथा । जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी आप की इस टिप्पणी के लिए मेरा हार्दिक आभार काबुल कीजिएगा.
जनाब ओमप्रकाश क्षत्रिय जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया तंज़ में डूबी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समर कबीर जी आप को लघुकथा पसंद आई. मेरी मेहनत सार्थक हो गई. कृपया आभार काबुल कीजिएगा.

विभिन्न मंचों पर चल रही साहित्यिक गतिविधियों  से मोहित नव लेखकों की दुविधाओं का सुन्दर चित्रण ...हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी  

आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आप का कहना सही है. लघुकथा मंचों के इसी भंवरजाल को व्यक्त करने का प्रयास किया है. जिस की विस्तृत समीक्षा आप ने की है. शुक्रिया आप का.

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