आदरणीय साथिओ,
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आयोजन के शुभारम्भ की ह्रदय से बधाई आ० मोहम्मद आरिफ साहब, यूँ तो लघुकथा के आकर में संक्षिप्तता उसकी विशेषता होती है, किन्तु यह अति लघुकथा यदि थोड़े से और विस्तार के साथ लिखी जाती तो अपना संदेश और अधिक सफलतापूर्वक सम्प्रेषित कर पाती.
डॉ शंकर पुणताम्बेकर ने आपने आलेख में कहा है कि
"लघुकथा के आकार पर जब हम विचार करते हैं तो मुख्यत: हमें यही देखना चाहिए कि उसमें निमग्नता बनी रहती है या नहीं.यदि नहीं बनी रहती है तो वह अनावश्यक दीर्घ है. कुछ लघुकथाएँ ऐसी भी होती हैंजो पूर्ण निमग्नता का अवसर नहीं दे पातीं गीत जैसे बीच में ही रुक गया हो.कहा जा सकता है कि ऐसी लघुकथाएं अनावश्यक रूप से छोटी होती हैं."
बस यही भाव आपकी कथा के प्रति मेरे भी हैं जैसे कोई मधुर गीत अचानक रुक गया हो सादर!
शुक्रिया शहजाद भाई! हम एक दुसरे से ही तो सीखतें है ओबीओ मंच की यही परम्परा भी रही है.
आ. मोहम्मद आरिफ़ जी, लघुकथा गोष्ठी के ख़ूबसूरत आग़ाज़ हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आकार के सन्दर्भ में आ. योगराज सर की बात से मैं भी सहमत हूँ. विषय आपने बहुत अच्छा उठाया है.
1. //धर्म , नैतिकता , मानवता , सदाशयता , सच्चरित्र , अहिंसा , ईमानदारी और संस्कृति// मुझे लगता है कि यहाँ पर "संस्कृति" का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है.
2. दुभर = दूभर
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
कम शब्दों में आपने अपनी बात को कहने का प्रयास किया है जनाब मोहम्मद आरिफ साहब जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई | पर लग रहा है , कथा शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयी | सादर|
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