आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया कथा , नया फ्लेवर है कथा में , थोड़ी लम्बी लग रही है पर | सादर |
बहुत बढ़ीया लघुकथा आदरणीय विजय जी । एकदम सधी व प्रवाहमयी लघुकथा । लघुकथा का शीर्षक भी प्रभावशाली । सादर शुभकामनाएं ।
बहुत ही बढ़िया लघु कथा , आदरणीय बधाई स्वीकारें ।
आ. डॉ. विजय शंकर जी, आपकी इस लघुकथा को पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई. प्रदत्त विषय को आपने जिस ख़ूबसूरती से परिभाषित किया है वह काबिले तारीफ़ है. इस उम्दा लघुकथा पर दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए.
1. प्रतिस्पर्था = प्रतिस्पर्धा
2. // आज वह मुक्त है आदमी के तमाम झंझटों से।// "आदमी की" अथवा "अपनी".
3. //ऐसी ही चमत्कृत दुनिया में एक आदमी अपनी धुन में खोया हुआ कहीं पैदल जा रहा था कि उसके सामने उसी की तरह अपनी धुन में खोया हुआ कोई आ रहा था , एक नज़र उसने उसे देखा और सोचा कोई प्रतिरूप होगा , खुद हट जाएगा मेरे सामने से , और चलता रहा और अचानक उस आदमी से टकरा गया। // यह वाक्य कुछ लम्बा हो गया है. अल्प विराम की जगह पूर्ण विराम के प्रयोग द्वारा इसे छोटा किया जा सकता है. "और चलता रहा और अचानक उस आदमी से टकरा गया।" यहाँ "और" की पुनरावृत्ति हो रही है.
4. शीर्षक के साथ "एक काल्पनिक कहानी" के प्रयोग के पीछे कोई ख़ास वजह?
5. " हम दोनों आदमी हैं तो आइये कुछ देर बैठ कर बातें कर लें " बहुत ही उम्दा और मारक पंक्ति है.
सादर.
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