आदरणीय साथिओ,
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बढ़िया लघुकथा है आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. थोड़े से सम्पादन से यह और भी बढ़िया हो जाएगी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. संवादों और शीर्षक में मौलिकता हेतु आपको अलग से विशेष बधाई. सादर.
"क्या ज़रूरत थी सोशल मीडिया पर सरकारी मुद्दों पर कटाक्ष करने की... तलाक़शुदा और विधवा महिला विमर्श करने की?"//बहुत सटीक मुद्दा उठाया और चाय पर चर्चा की बात भी मार्केदार रही , बधाई इस सफल लघुकथा के लिए आदरणीय उस्मानी जी
लघुकथा— वही बीवी
''भाई शादी करनी है तो किसी ने किसी लड़की के लिए हां करनी पड़ेगी,'' मोहन ने समझाया तो केवल बोला, '' मगर, उस की उम्र 19 वर्ष है और मेरी 45 वर्ष. फिर उस के पिताजी गहने के साथसाथ 3 लाख की एफडी मांग रहे हैं. हमारी जोड़ी नहीं जमेगी ?''
'' और, उस दूसरी वाली में क्या कमी है ? उस से हां कर दो ?''
'' वह पति द्वारा छोड़ी हुई चालाक महिला है. फिर, उस के पिताजी को बहुत ज्यादा माल चाहिए. वह मैं नहीं दे सकता हूं.''
'' तब इस कम उम्र लड़की से शादी कर लो ? इस में क्या बुराई है ? पिताजी गरीब और सीधेसादे है. वे जानते है कि तुम शिक्षक हो, इसलिए उन्हों ने शादी के लिए हां की है. अन्यथा तुम जैसे उम्रदराज से वे शादी करने को राजी नहीं होते .''
'' नहीं भाई ! हमारे बीच उम्र आड़े आ जाएगी. मैं घर पर अपना काम निपटा रहा होऊंगा और वह पड़ोस में ताकझांक कर रही होगी. मेरे शरीर और उस का शरीर को देखो. हमारा मेल संभव नहीं है.''
'' यदि तुम्हें शादी करनी है तो कहीं न कहीं समझौता करना ही पड़ेगा ?'' मोहन ने कहा तो केवल ने मोटरसाइकल दूसरी ओर मोड़ दी.
'' अरे भाई ! अब किधर चल दिए ? घर चलो. वैसे भी घुमतेघुमते बहुत देर हो गई है,'' मोहन ने केवल का कंधा पकड़ कर कहा.
'' जब समझौता ही करना है तो मेरी पुरानी बीवी कौनसी बुरी है ! वह इस से कम में तो वही मान जाएगी,'' कहते हुए उस ने मोटरसाइकल की गति तेज कर दी.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
वाह वाह, बहुत खूब! बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. तीर एकदम निशाने पर लगा जो प्रदत्त विषय से पूर्ण न्याय भी हुआ और सन्देश भी सार्थक निकल कर आया. इस कसी और सधी हुई लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय भाई साहब जी , प्रणाम. शादी की तैयारी के पहले यह लघुकथा obo के लिए लिखी थी. आज बहुत व्यस्त था फिर भी समय निकाल कर यहाँ उपस्थिति हुआ हूँ. आप की समीक्षा पढ़ कर दिल बागबाग हो गया. शुक्रिया आप का. मुझे अब लगाने लगा है कि आप की सलाह पर पढ़ना ज्यादा और लिखना कम करना पड़ेगा. यह लेखन का तकाजा भी है. आप को इस सलाह को नमन. आप का बहुतबहुत आभार आदरणीय .
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी आप का आभार . आप को लघुकथा अच्छी लगी. मेरी मेहनत सार्थक हो गई .
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