For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय के साँचे में कुछ भभका सहसा

गुन्थन-उलझाव व भार वह भीतर का

चिन्ताग्रस्त, तुमने जो किया सो किया

वह प्रासंगिक कदाचित नहीं था

न था वह स्वार्थ न अह्म से उपजा

किसी नए रिश्ते की मोह-निद्रा से प्रसूत

ज़रूर वह तुम्हारी मजबूरी ही होगी

वरना कैसे सह सकती हो तुम

मेरी अकुलाती फैलती पीड़ा का अनुताप

तुम जो मेरे कँधे पर सिर टिकाए

आँखें बन्द, क्षण भर को भी

मेरा उच्छवास तक न सह सकती थी

और अब ....

कभी इस कभी उस स्थिति के नेपथ्य में

छोटी-मोटी बातों में भी अनायास

कुछ भी होना

या न होना

सब मेरा ही अपराध हो जाता है

अप्रमाणिकता जिसकी बड़ी देर तक मुझमें

भटकती परखती सुलगती रहती है

काँपते उदगारों के दीखते परिदृश्य में

शब्द हवा में फड़फड़ाते

उलझे... अनसुने... घबराए...

उतरकर तुम तक पहुँच ही नहीं पाते

फड़फड़ाते अनसुने शब्दों के अर्थों का भार

व्यथित अंगार, स्वयं से स्वयं की दूरियाँ

विक्षोभित मन यह फ़ासले सह नहीं पाता

गहराता जा रहा है भीतर स्याह घेरे में

पिघल-पिघल कर विस्तृत होती पीड़ा में

निस्तब्धता का ज़हर

जीवन के अन्त में अन्त तक

मानसिक सूक्षमतम कोषों में

तुमसे संवेदना की अपेक्षा करते

कण-कण होकर बिखरते

ऐसे में दरारें नहीं पड़ जाएँगी क्या

समय के साँचे में दीवारों को ताकते ?

                  --------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1040

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 3, 2017 at 6:04pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी

Comment by vijay nikore on December 3, 2017 at 6:04pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी

Comment by vijay nikore on December 3, 2017 at 6:03pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहित जी

Comment by narendrasinh chauhan on November 30, 2017 at 5:55pm

बहोत खूब सुन्दर रचना 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 29, 2017 at 9:24pm

आपकी रचनाओं में गहन चिंतन नज़र आता है आ वीजय सर| एक और बढ़िया रचना| हार्दिक बधाई सर|

Comment by vijay nikore on January 25, 2017 at 9:49am

//भाव सिन्धु की दशा का सुन्दर वर्णन.//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on January 25, 2017 at 9:47am

//भावनावों को मर्मस्पर्शी संवेदना के माध्यम से उकेरती इस अद्भुत रचना के लियी आपको प्रणाम//

आपसे मिली यह सराहना मेरे लेखन-कर्म के लिए बहुत मान्य रखती है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:07am

//आपकी रचनाएं हमेशा एक गहन दर्शन से ओतप्रोत होती हैं। यह रचना भी उसी श्रेणी की उत्कृष्ट रचना है//

आपसे मिली यह सराहना मेरे लिए पारितोषिक से कम नहीं है, आदरणीय विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी। आपका

हार्दिक धन्यवाद।              

Comment by vijay nikore on December 3, 2016 at 5:49pm

आदरणीया राजेश जी,

//आपकी हर रचना निःशब्द कर देती है बहुत कुछ सोचने को मजबूर भावनाओं का ज्वार भाटा आपकी कलम से मुसल्सल बहता है जिससे पाठक बंध जाता है //

आपसे ऐसी उच्च सराहना मिलना मेरे लिए पारितोषिक है और मुझको और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है। हार्दिक धन्यवाद। सुखी रहें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2016 at 5:15pm

आपकी हर रचना निःशब्द कर देती है बहुत कुछ सोचने को मजबूर भावनाओं का ज्वार भाटा आपकी कलम से मुसल्सल बहता है जिससे पाठक बंध जाता है बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर आद० विजय निकोर जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service