दिनांक 16 दिसम्बर 2017 को ओबीओ साहित्यिक मासिक संगोष्ठी का आयोजन नरेश मेहता हाल, हिंदी भवन भोपाल में किया गया। संगोष्ठी आदरणीय ज़हीर क़ुरैशी जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में आदरणीय सौरभ पाण्डेयजी एवं आदरणीय तिलकराज कपूर जी मंचासीन हुए। कार्यक्रम का सञ्चालन आदरणीय बलराम धाकड़ जी ने किया।
(रचनापाठ करते आदरणीय चरनजीत सिंह कुकरेजा जी )
कार्यक्रम का आरम्भ माँ सरस्वती के माल्यार्पण एवं आदरणीय अशोक व्यग्र जी द्वारा सरस्वती-वंदना से हुआ। इसके पश्चात् आदरणीय अरविन्द जैन जी अपनी कविताओं से श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया-
समय का दर्द भोगा है, समय से सीखते कितने?
समय से हारते ही है, समय से जीतते कितने।
आदरणीय कपिल शास्त्री जी ने लघुकथा “इतना न करो प्यार” का पाठ किया। आदरणीया प्रतिभा श्रीवास्तव ‘अंश’ द्वारा अतुकांत कविता ‘दास्तां’ का पाठ किया-
सरकारी दफ्तरों की मेज़ पर,
नाम मेरा दर्ज है ।
दिन महीने साल भी बीते,
बीतेँगे कई साल भी।
आदरणीया शशि बंसल जी ने लघुकथा ‘लिंगभेद’ एवं माँ पर कविता सुनाई। आदरणीय मोतीलाल आलमचंद्र जी ने अतुकांत कविता ‘आधार’ सुनाई-
तेरे हस्त चिन्ह ही तो मांगे थे
और तू पदचिन्ह छोड़ गया
आदरणीया कल्पना भट्ट जी ने ‘पार्षद वाली गली’ शीर्षक लघुकथा का पाठ किया। आदरणीया अर्पणा शर्मा जी ने अपनी कवितायेँ सुनाई-
जीवन रंगीनियाँ इठलातीं,
मृगतृष्णाओं सी ललचातीं,
असार इस संसार तले....
आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी ने अपने छंदों से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया-
गणतंत्र हमारा अमर रहे, जय हिंद हमारा नारा है।
गांधी सुभाष का देश यही, यह हिन्दुस्तान हमारा है।।
ध्वज जहाँ तिरंगा लहराता, वह हिंद जगत में न्यारा है।
भारत माता के चरणों को, सागर ने यहाँ पखारा है।।
आदरणीय विनय कुमार जी ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया वहीँ आदरणीय अशोक व्यग्र जी ने अपनी विशिष्ट शैली में छंद आधारित गीत सुनाए। आदरणीय दानिश जयपुरी जी ने अपनी गज़लें सुनाई-
क्या कशिश है तेरे इशारों में,
रक्स करना पड़ा शरारों में
डॉ. विमल कुमार शर्मा जी ने अपनी ग़ज़ल सुनाई-
जिनको पकड़ा हाथ समझ कर वो ख़ाली दस्ताने निकले।
जिस साक़ी से थीं उम्मींदें ख़ाली सब पैमाने निकले।
आदरणीय बलराम धाकड़ जी ने अपनी ग़ज़लों से खूब वाहवाही लूटी-
किसी के पास जब तक घर नहीं था,
किसी भी हाथ में पत्थर नहीं था।
चलो ये मान लेते हैं कि दफ्तर तक पहुँचती है
मगर क्या वाकई ये डाक अफसर तक पहुँचती है
आदरणीया सीमा पांडे मिश्रा जी ने एक नदी विषयक कविता एवं अपने दोहे सुनाये-
आँगन लगे उदास सा कैसी थी चहकार।
बिटिया कब घर आयेगी पूछ रहे हैं द्वार।
इस नाचीज़ को भी एक गीत और एक ग़ज़ल सुनाने का अवसर मिला-
आज सखी री दूल्हा गाओ
डोली आई, सेज सजाओ
कबीर के हैं भजन दिलों में, ग़ज़ल रगों में है राबिया की
नयन में कान्हा बसे हुए हैं, लबों पे मेरे अली-अली है
आदरणीय डॉ एहसान आज़मी ने अपनी गज़लें सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी-
ज़रा सी मुस्कराहट देखकर बच्चों के होंठों पर
हम अपनी ज़िंदगी के दर्द सारे भूल जाते हैं
आदरणीय चरनजीत सिंह कुकरेजा जी ने नव वर्ष पर आधारित गीत सुनाया-
एक अवगुण के पीछे सारे चिप जाते हैं गुण,
सम्भलके चलना मानव जग में
कोई जाल रहा है बुन
आदरणीय गोकुल सोनी जी ने हास्य कवितायेँ सुनाई-
देश का बंटाधार हो रहा
इससे हमको क्या लेना
आदरणीया ममता वाजपेयी जी ने अपनी सुमधुर आवाज़ में “तेरी महकी महकी यादें रख लीं मैंने चुपके से” गीत सुनाया
आदरणीय तिलकराज कपूर जी ने नए वर्ष के स्वागत में एक ग़ज़ल सुनाई-
नई सोच लेकर नया साल आये
हरेक दिल मोहब्बत के नगमे सुनाए
आदरणीय सौरभ पाण्डे जी ने ‘उत्सव’ पर शब्दचित्र सुनाएँ-
इन जलते दीयों, बिजली की लड़ियों से बेहतर /
अपनी घरेलू ढिबरी है, भइया /
घर की रोशनी घर में रहती है ..
कार्यक्रम के अध्यक्ष आदरणीय ज़हीर क़ुरैशी जी ने अपनी गज़लें सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और आयोजन को नई ऊँचाईयाँ प्रदान की-
मंदिर या मस्जिदों की तरफ मैन नहीं किया,
तर्कों ने आस्था का समर्थन नही किया,
कार्यक्रम का समापन आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी के आभार प्रदर्शन और चाय-बिस्किट के साथ हुआ।
समाचार पत्रों में आयोजन :-
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हार्दिक धन्यवाद
सभी को हार्दिक बधाई। ओ बी ओ ज़िन्दाबाद।
हार्दिक धन्यवाद। आदरणीय स्व.जहीर कुरैशी सर की अध्यक्षता में ओबीओ भोपाल चैप्टर ने कई सफल आयोजन किए। सादर
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