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तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता - सलीम रज़ा रीवा

 2122 1212 22 

तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता
दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता   
-
इश्क़ तुमसे किया नहीं होता 
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता
-
ज़िन्दगी तो  संवर गयी  होती 
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
-
उसकी चाहत ने कर दिया पागल 
प्यार  इतना  किया  नहीं  होता 
-
सबको दुनिया बुरा बनाती है
कोई इंसाँ बुरा नही होता
-
चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी
अब रज़ा हौसला नहीं होता.
_____________________
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 5:21pm
बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on January 15, 2018 at 3:21pm

अच्छा है ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 3:08pm
आली जनाब समर साहब आपकी शुक्रिया नवाज़िश करम..
एक अभी शेर हुआ है अगर किसी लायक़ हो...
मेरे घर में ख़ुशी नहीं आती
तू अगर हम-नवा नहीं होता
Comment by Samar kabeer on January 15, 2018 at 3:06pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,'मोमिन' की ज़मीन में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।कि

Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 9:35am
भाई सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,
आपकी की बधाई के लिए शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 9:33am
भाई नीलेश जी आपकी मुहब्बत और
टंकण गलती अवगत कराने के लिए बहुत शुक्रिया,
Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 5:41am
आद0 सलीम जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर हुए हैं। हार्दिक बधाई।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 14, 2018 at 10:56pm

आ. सलीम साहब,
तीसरे शेर में ..हँसी को हसीं कर लें ..
सबको दुनिया बुरी बनाती है ..बुरा बनाती है ...देखिएगा 
सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on January 14, 2018 at 9:21pm
आ. अजय तिवारी जी बहुत बहुत शुक्रिया.
आपकी बात समझ नहीं पाया कुछ स्पष्ट करें
Comment by SALIM RAZA REWA on January 14, 2018 at 9:20pm
मोहित जी बहुत बहुत शुक्रिया.

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