आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आ योगराज प्रभाकर सर
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य के साथ आदिवासी युवक की मनोदशा, तात्कालिक आवश्यकता और दिवास्वप्न को शाब्दिक करती बढ़िया पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।
रचना को सराहने के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहजाद साहब
जनाब विनय कुमार साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
बहुत बहुत आभार आ तस्दीक अहमद खान साहब
वाह! कुछ अलग कथ्य ने इस रचना को शानदार बना दिया।हार्दिक बधाई आ.विनय सर जी।
बहुत बहुत आभार आ जानकी वाही जी
बढ़िया कथा आदरणीय विनय कुमार जी हार्दिक बधाई प्रेषित है
बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पांडे जी
आज भी तथाकथित विकसित समाज के लिए आदिवासी एक मनोरंजन ही हैं. इस विषय पर कलम चलाने के लिए आपको ढेरों साधुवाद आदरणीय विनय जी. //थोड़ा प्यार से बात करलो तो कुछ भी सोच लेते हैं लोग// इस पंक्ति को और बेहतर किया जा सकता है. सादर.
बहुत बहुत आभार आ महेंद्र कुमार जी, आपके सुझाव के अनुसार सोचता हूँ
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।
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