आदरणीय साथिओ,
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बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विनय जी. हार्दिक आभार. सादर.
भाई महेंद्र कुमार जी,आपकी लघुकथा पाठक को किसी और ही जगह पर ले जाती है. यह लघुकथा भी एक सफल लघुकथा है जिसमे सब कुछ आँखों के सामने घटित होता हुआ प्रतीत होता है. और क्या ऊंची उड़ान भरी है कल्पनाशीलता की, वाह!!! मेरी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.
दिवास्वप्न जागी आँखों से देखा गया सपना होता है जो फेंटेसी के बहुत आसपास की चीज़ होती है जिसका सार हास्यास्पद, नकारात्मक, सकारात्मक, परपीडक या कटाक्षपूर्ण कुछ भी हो सकता है. इस लघुकथा में भी क्योंकि फेंटेसी का तत्व हावी है तो मेरी नाचेज़ राय में एकदम प्रदत्त विषयानुरूप रचना है.
यह स्पष्ट व्याख्या मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मंच संचालक महोदय। अब मैं इस लघुकथा को और अच्छी तरह समझ कर लाभान्वित हो सकूंगा।
संशय निवारण हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया सर.
रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी का बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. दिवास्वप्न के सन्दर्भ में आपने जो प्रश्न पूछा है उसका समुचित उत्तर आदरणीय योगराज सर ने दे दिया है पर चूँकि आपने यह प्रश्न मेरी रचना के सन्दर्भ में उठाया है इसलिए इस पर कुछ कहना मेरा भी दायित्व बनता है. मैंने इस लघुकथा में इस ख्याल को अभिव्यक्त करने की कोशिश की है कि क्या हो यदि 'न्याय-दिवस' की संकल्पना हमारा दिवास्वप्न हो. इसके बाद की स्थिति सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी. यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि उसे यह स्थिति कैसी लगेगी. इस बाद की स्थिति पर मैंने इस लघुकथा में कुछ भी नहीं कहा है. सादर.
मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार जी।
सभी की तरह मुझे भी आपकी टिप्पणी का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है सर. आपकी उपस्थिति से किसी भी रचना का मान बढ़ता है. जानकार बहुत ख़ुशी हुई कि आपको लघुकथा पसन्द आयी. मेरा लिखना सार्थक रहा. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
बेहतरीन कथा हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. सादर.
जनाब महेन्द्र कुमार साहिब, अच्छी लघुकथा प्रदत्त विषय पर हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
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